नजीब मामले को लेकर कोर्ट ने सीबीआइ को आड़े हाथ लिया

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के लापता छात्र नजीब अहमद के मामले में दिलचस्पी के पूर्ण अभाव और किसी नतीजे पर नहीं पहुंचने को लेकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) को सोमवार दिल्ली हाई कोर्ट ने डांट लगाई। इस मामले की जांच पांच महीने पहले सीबीआइ को सौंपी गई थी। एमएससी बायोटेक्नोलॉजी का छात्र नजीब जेएनयू के माही-मांडवी छात्रावास से 15 अक्तूबर, 2016 को लापता हो गया था। घटना से एक रात पहले नजीब की अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्रों के साथ झड़प हुई थी।

न्यायमूर्ति जीएस सिस्तानी और न्यायमूर्ति चंद्रशेखर की पीठ ने दलीलों के दौरान कहा कि सीबीआइ की ओर से मौखिक रूप से दी गई जानकारी और सौंपी गई स्थिति रिपोर्ट में विरोधाभास से वह बहुत नाखुश है। यह विरोधाभास मामले में संदिग्ध विद्यार्थियों के फोन कॉल और संदेश के विश्लेषण के आधार पर सीबीआइ की ओर से दी गई स्थिति रिपोर्ट में है। जब कोर्ट को बताया गया कि स्थिति रिपोर्ट सीबीआइ के निरीक्षक की द्वारा तैयार की गई थी तो पीठ ने कहा कि जांच की जिम्मेदारी एजंसी को सौंपने वाले 16 मई के उसके आदेश के अनुसार, न्यूनतम डीआइजी रैंक के अधिकारी को जांच की निगरानी करनी थी।

कोर्ट ने कहा कि यह कैसी निगरानी है? अगर यह डीआइजी की निगरानी है तो बिना निगरानी के क्या होगा? उन्हें शायद (कार्यालय में) रिपोर्ट पढ़ने का भी समय नहीं मिला। उन्हें यहां आकर, इसे पढ़ने दें। पीठ ने कहा कि सीबीआइ की स्थिति रिपोर्ट में कुछ नहीं है। दिल्ली पुलिस की रिपोर्ट में काफी कुछ था। हमारा कहना है कि इसमें सीबीआइ की दिलचस्पी का पूर्ण अभाव रहा है। दोनों ओर से कोई परिणाम नहीं है। कागज पर भी कोई परिणाम नहीं है।

 

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