पूर्वोत्तर से दक्षिण-पश्चिम तक दिवाली, लेकिन रंगरूप अलग-अलग
पूर्व
पश्चिम बंगाल में दिवाली की तैयारी 15 दिन पहले से शुरू हो जाती है। घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है। मध्यरात्रि महाकाली की पूजा की जाती है। ओडिशा में पहले दिन धनतेरस और पांचवें दिन भाईदूज मनाया जाता है। बिहार और झारखंड में पारंपरिक गीत, नृत्य और पूजा का प्रचलन है।
पूर्वोतर
दीपावली के दिन असम, मणिपुर, नगालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल, सिक्किम और मिजोरम में काली पूजा का काफी महत्व है। दीपावली की मध्य रात्रि तंत्र साधना के लिए सबसे सही होती है।
पश्चिम
गुजरात में रंगोली बनती है। यहां देवी लक्ष्मी के स्वागत का काफी महत्व है। सभी घरों में देवी के लिए चरणों के निशान भी बनाए जाते हैं। घरों में देसी घी के दीये सारी रात जलाए जाते हैं। अगली सुबह इस दीये की लौ से धुआं एकत्र करके काजल बनाया जाता है। महाराष्ट्र में दीपावली का त्योहार चार दिन चलता है। पहले दिन वसुर बरस मनाया जाता है, दूसरा दिन धनतेरस पर्व होता है।। चौथे दिन दीपावली माता लक्ष्मी के पूजन के पहले करंजी, चकली, लड्डू, सेव आदि व्यंजन बनाए जाते हैं।
उत्तर
उत्तर भारत में दीपावली का त्योहार भगवान राम की विजयी गाथा और श्रीकृष्ण की शुरू की गई नई परंपरा और उत्सव से जुड़ा है। पहला दिन नरक चतुदर्शी श्रीकृष्ण से जुड़ा है। दूसरा दिन देवता कुबेर और भगवान धन्वंतरि से जुड़ा है। तीसरा दिन माता लक्ष्मी और अयोध्या में राम की वापसी से जुड़ा है। चौथा दिन गोवर्धन पूजा अर्थात श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है तो पांचवां दिन भाई दूज का है। लक्ष्मी पूजन के दिन पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और अन्य आसपास के इलाकों में घरों को दीपकों, बंधनवार और रंगोली से सजाया जाता है तथा रात में देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। हरियाणा के गांवों में घर की दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाई जाती है जिस पर घर के हर सदस्य का नाम लिखा जाता है।
दक्षिण
दक्षिण भारत में दो दिन का उत्सव होता है। लोग सुबह अपने घर का आंगन साफ-धो कर रंगोली बनाते हैं। यहां थलाई दिवाली भी होती है। इसमें नवविवाहित जोड़े को दिवाली मनाने के लिए लड़की के घर जाना होता है। दोनों के परिवार वाले जोड़े को अनेक उपहार देते हैं। आंध्रप्रदेश में दिवाली में हरिकथा या भगवान हरि की कथा का संगीतमय बखान किया जाता है। कर्नाटक में दिवाली के दो दिन मुख्य रूप से मनाए जाते हैं- पहला अश्विजा कृष्ण और दूसरा बाली पदयमी।
मध्य
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में दीपावली पांच दिनों की होती है। यहां के आदिवासी क्षेत्रों में दीपदान किया जाता है। आदिवासी स्त्री व पुरुष नृत्य करते हैं। यहां धनतेरस के दिन से यमराज के नाम का भी दीया जलाया जाता है। यह दीप घर के मुख्य द्वार पर लगाया जाता है। मध्यभारत में मांडना बनाने की परंपरा प्रचलित है।