दिल्ली के बाजार और राजनीति में छठ की छटा, नहाय-खाए के साथ 24 को शुरू होगा पर्व

दिवाली संपन्न होने के साथ ही लोक आस्था के महापर्व छठ की तैयारी दिल्ली और आसपास के शहरों में शुरू हो गई। बिना पुरोहित और बिना मंत्र के बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जानेवाला पर्व अब दिल्ली और एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) का भी मुख्य पर्व बन गया है। चार दिन का यह पर्व 24 अक्तूबर को नहाय-खाए के साथ शुरू होगा। 25 अक्तूबर को खरना और 26 अक्तूबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर मुख्य पर्व की शुरुआत होगी जो 27 अक्तूबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर संपन्न होगा। दिल्ली और आसपास के इलाकों में रहने वाले पूर्वांचल के प्रवासियों का पहला प्रयास तो इस पर्व में अपने गांव जाने का होता है। लेकिन एक तो संख्या ज्यादा होने और ज्यादातर परिवारों की तीसरी पीढ़ी इस इलाके में बड़ी होने के कारण अपने मूल स्थान के बजाए लोग यहीं छठ मनाने लगे हैं। केंद्र सरकार ने सौ से ज्यादा विशेष रेलगाड़ी चलाई है लेकिन आबादी ज्यादा होने से रेलगाड़ियों में ही नहीं बसों में भी भारी भीड़ बिहार और उत्तर प्रदेश जा रही है। यह सिलसिला 24 अक्तूबर तक चलेगा। पहले लोगों को छठ के लिए बिहार और अन्य शहरों से सामान मंगवाने पड़ते थे। दिल्ली भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजीत दुबे बताते हैं कि साठ के दशक में उनकी मां जब दिल्ली में छठ करती थी तब छठ का सामान जुटाना कठिन होता था। अब तो एक अनुमान के मुताबिक, करीब सौ करोड़ का बाजार केवल छठ का दिल्ली और आसपास के इलाकों में होता है।

पहले दिल्ली में पर्व के बाजारों में भैया दूज तक ही रौनक रहती थी, अब तो असली रौनक ही कल भैया दूज के बाद ही शुरू होगी। लोक आस्था के इस पर्व में पूजा की सामग्री इस तरह की होती है कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी पर्व को उसी उत्साह से मना ले जिस तरह से अमीर। मूली, सुथनी, अदरख, ईख, केला, नींबू, कसार, ठेकुआ (मीठा व्यंजन) और इस समय आसानी से मिलने वाले फलों के साथ पूरी पवित्रता के साथ यह पर्व मनाया जाता है। साठी धान और अलग से रखे गेहूं को साल भर पक्षियों से भी बचा कर रखा जाता है। पहले तो पूर्वांचल के लोग इस इलाके में कम थे इसलिए लोग पर्व मनाने गांव ही जाया करते थे। अस्सी के दशक के बाद इस इलाके में पूर्वांचल के प्रवासियों की तादात बढ़ी। उन्होंने अपने साधनों से छठ मनाने की शुरुआत की। वोट की राजनीति में उनका महत्त्व बढ़ने लगा तो दिल्ली के विभिन्न राजनीतिक दल उन्हें प्रभावित करने के लिए तरह-तरह के वादे करने लगे। 1993 में दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने पर सरकारी खर्चे से छठ घाट बनने लगे। फिर कांग्रेस की सरकार बनी। पूर्व सांसद महाबल मिश्र और अजीत दुबे आदि के प्रयास के छठ की छुट्टी की मांग उठने लगी। साल 2000 में शीला दीक्षित ने छठ को ऐच्छिक अवकाश घोषित किया। राष्ट्रीय स्तर पर 2010 में छठ पर ऐच्छिक अवकाश घोषित किया गया। अब तो उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड के चार तराई जिलों में छठ पर सार्वजनिक अवकाश होने लगा है।

दिल्ली में राष्ट्रपति शासन के दौरान 2014 में छठ को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया। दिल्ली बिहार और झारखंड के बाद तीसरा राज्य बना जहां छठ पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया। मजदूर नेता बलिराम यादव ने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार से उत्तर प्रदेश में भी छठ के दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित करने और हिंडन नदी में तुरंत पानी छोड़ने की मांग की है। दिल्ली और एनसीआर के प्रवासी अब चुनाव के मुख्य केंद्र बन चुके हैं इसलिए उन्हें प्रभावित करने के लिए छठ पर्व पर हर दल में होड़ सी लग जाती है।

 

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