जज्बे की जीत
रविवार को ढाका में एशिया कप हॉकी चैंपियनशिप में भारत ने जो खिताबी जीत दर्ज की, उसकी अहमियत इसलिए भी है कि भारत एक बार फिर इस खेल में विश्व पटल पर अपनी धमक कायम करने में कामयाब हो रहा है। इस प्रतियोगिता के फाइनल मैच में भारत के सामने मलेशिया की टीम थी, जिसे अपेक्षया काफी मजबूत माना जाता है। लेकिन मलेशिया से कड़ी चुनौती मिलने के बावजूद भारत ने शुरू से अपना आक्रामक रुख बनाए रखा और मैच का दूसरा क्वार्टर खत्म होते-होते 2-0 से आगे हो गया। इसके बाद मलेशिया ने भी मैच में वापसी के लिए पूरा जोर लगा दिया। मगर तमाम कोशिशों के बावजूद वह खेल खत्म होने तक सिर्फ एक गोल कर सका। इस तरह दस साल बाद एशिया कप का यह खिताब भारत के नाम हुआ। गौरतलब है कि अब तक भारत और पाकिस्तान ने इस कप पर तीन-तीन बार कब्जा जमाया है। जबकि इस खिताब पर अब तक चार बार कब्जा जमाने वाली दक्षिण कोरिया की टीम को तीसरे स्थान के लिए हुए मुकाबले में पाकिस्तान ने हरा दिया।
दरअसल, हॉकी एक तेज गति का खेल माना जाता है और इसमें जीत के लिए रक्षात्मक होने के बजाय आक्रामक रुख अख्तियार करना हमेशा फायदेमंद होता है। भारतीय खिलाड़ियों ने पिछले कुछ सालों में अपने खेल के तौर-तरीके में काफी बदलाव किया है। रक्षात्मक खेल खेलने की भारत की छवि टूटी है। ताजा खिताबी जीत में भी भारतीय टीम का यह रुख साफ दिखा। खेल विश्लेषकों ने इसे भारतीय टीम की ताकत के रूप में देखना शुरू कर दिया है। अगर हमारी हॉकी टीम ने रणनीति के स्तर पर मैदान में रक्षा और आक्रमण, दोनों के संतुलित प्रयोग में महारत हासिल कर ली तो वह फिर से अंतरराष्ट्रीय हॉकी का चेहरा बन जा सकती है। एक समय था जब दुनिया भर में भारतीय हॉकी टीम का जलवा था और उसे आज भी याद किया जाता है।
पिछले कुछ सालों के दौरान भारतीय हॉकी टीम के प्रदर्शन में लगातार सुधार हुआ है और अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में देश भर की निगाहें इस पर लगी रहती हैं। सीनियर या फिर जूनियर टीमों ने कई अहम प्रतियोगिताओं में बाकी सशक्त मानी जाने वाली टीमों के मुकाबले काफी बेहतर प्रदर्शन किया और कई खिताबी जीत हासिल कीं। इससे पहले हॉकी की दुनिया में न केवल काफी दिनों तक कोई बड़ी उपलब्धि हाथ नहीं आने, बल्कि नतीजों की तालिका में कोई सम्मानजनक जगह न मिल पाने की वजह से आम लोगों के बीच भी इस खेल के प्रति निराशा पैदा होने लगी थी, जो कि स्वाभाविक था। लेकिन इसमें जितनी भूमिका खिलाड़ियों की तैयारी और प्रदर्शन की थी, उससे ज्यादा यह सरकार और खेल महकमों की तरफ से मिली उपेक्षा का मामला था। यह किसी से छिपा नहीं है कि क्रिकेट को खेल का पर्याय बना देने के माहौल में हॉकी और फुटबॉल सहित तमाम अन्य खेल किस तरह हाशिये पर रहे हैं। इसके बावजूद हाल के वर्षों में भारतीय हॉकी ने जो ऊर्जा हासिल की है, अगर उसे बनाए रखना और आगे बढ़ाना है, तो देश के खेल महकमे को इस खेल के प्रति भी अनुराग और उत्साह दिखाना होगा।