30 साल से ज्यादा उम्र की कामकाजी महिलाओं के लिए 5 फाइनैंशल प्लानिंग टिप्स
20 साल की उम्र के आसपास अक्सर आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में ही लगभग सारा पैसा खर्च हो जाता है, क्योंकि वेतन के रूप में मिलने वाले पैसों से पहले जरूरतों को पूरा करना पड़ता है। लेकिन, 30 साल की उम्र में इसमें थोड़ा बदलाव करना जरूरी हो जाता है। अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए इस उम्र से ही हर एक चीज पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। खास तौर पर महिलाओं के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है, जिन्हें अपनी जिंदगी के अलग-अलग पड़ाव में तरह-तरह की आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या में समय के साथ वृद्धि होने के बावजूद स्वतंत्र निवेश की दृष्टि से इनकी संख्या काफी कम है। एक जाने-माने एएमसी द्वारा किए गए एक सर्वे में पता चला है कि सिर्फ 23% कामकाजी महिलाएं निवेश करती हैं। बाकी सभी कामकाजी महिलाएं अपनी जरूरतों के लिए या तो अपने माता-पिता पर या अपने जीवनसाथी पर निर्भर रहती हैं। जबकि इनमें से अधिकांश कामकाजी महिलाओं को निवेश का फैसला हो जाने के बाद उसके बारे में पता चलता है, लेकिन कुछ महिलाएं इस फैसले में बराबर की भागीदार भी होती हैं।
आइए, अपने भविष्य को आर्थिक दृष्टि से मजबूत करने के लिए 30 साल की उम्र में उठाए जाने वाले कुछ आवश्यक कदमों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं।
1. इमर्जेंसी फंड बनाएं, कर्ज से बचें
चाहे एजुकेशन लोन हो, पर्सनल लोन हो या कार लोन, सही समय पर न चुकाने पर यह कर्ज आपको डूबा सकता है। पैसे जमा करने के लिए सबसे पहले कर्ज से छुटकारा पाना जरूरी होता है। खास तौर पर खराब कर्ज से। यदि आप इन्हें एक बार में चुकाने में सक्षम नहीं हैं तो आपको थोड़ा-थोड़ा करके और सबसे पहले उस कर्ज को चुकाना चाहिए जिस पर आपको ज्यादा ब्याज देना पड़ रहा है।
अपने मौजूदा कर्ज को चुकाने से पहले और कोई लोन न लें या कोई महंगी चीज न खरीदें जैसे लक्ज़री कार और मकान क्योंकि ऐसा करने से आप फिर से कर्ज के जाल में फंस जाएंगी। आप अपने होम लोन को जारी रख सकती हैं क्योंकि इसमें आपको टैक्स संबंधी लाभ मिलता है। अपना सारा कर्ज चुका लेने के बाद, एक इमर्जेंसी फंड तैयार करने के लिए अब आपके पास पहले से अधिक पैसे होंगे। इस इमर्जेंसी फंड से आपका 6 से 8 महीने का खर्च चल जाना चाहिए।
2.अपनी बीमा कराएं
लोग, निवेश और बीमा को लेकर अक्सर उलझन में पड़ जाते हैं और वे इन्हें एक दूसरे का पूरक मान बैठते हैं। फाइनैंशल प्लानिंग के लिए निवेश और बीमा दोनों बहुत मायने रखते हैं और अपने भविष्य के लिए अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए आपको दोनों की जरूरत है। बीमा के मामले में महिलाएं काफी हद तक अपने एंप्लॉयर्स इंश्योरेंस या फैमिली फ्लोटर पर निर्भर रहती हैं। इमर्जेंसी के समय यह कम पड़ सकता है।
कामकाजी महिलाओं को एक अलग इंश्योरेंस प्लान पर विचार करना चाहिए। आपकी फाइनैंशल प्लानिंग में लाइफ कवरेज के लिए टर्म इंश्योरेंस और मेडिकल खर्च के लिए हेल्थ इंश्योरेंस जरूर शामिल होना चाहिए। अपनी जोखिम की स्थिति और अपने एसेट्स के आवंटन के आधार पर आप क्रिटिकल ईलनेस प्लान, एंडोमेंट, इत्यादि पर भी विचार कर सकती हैं।
3.आगे की सोचें, रिटायरमेंट के बारे में सोचें
महिलाओं को दीर्घकालिक निवेशक माना जाता है और उनके कामकाजी साल पुरुषों की तुलना में कम होने के कारण उन्हें थोड़ा पहले ही रिटायरमेंट के लिए प्लानिंग करना शुरू कर देना चाहिए। आपको दीर्घकालिक निवेश के लिए सही एसेट्स का चयन करना चाहिए। कुछ लोकप्रिय दीर्घकालिक निवेश के माध्यम हैं- इक्विटी, पीपीएफ, पेंशन प्लान, इत्यादि। लेकिन टैक्स कटौती और पैसों में उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखते हुए अपने प्रभावी रिटर्न की गणना करें।ॉ
4.जोखिम का सामना करने के लिए तैयार रहें
शोध से पता चलता है कि महिलाएं जोखिम उठाने से कतराती हैं और वे अपना पैसा किसी सुरक्षित और गारंटीयुक्त बचत विकल्पों जैसे बैंक डिपॉज़िट, पीपीएफ, बीमा, इत्यादि में लगाना ज्यादा पसंद करती हैं। बाजार से जुड़े उत्पादों, जैसे इक्विटी की तुलना में इन विकल्पों से काफी कम रिटर्न मिलता है। इसलिए थोड़ी जानकारी लेकर और थोड़ा सोच-समझकर जोखिम उठाने से आपके निवेश पर इसका अच्छा असर पड़ सकता है और आपको बेहतर रिटर्न मिल सकता है जो आगे चलकर टैक्स की दृष्टि से भी फायदेमंद होगा।
5.संतुलित पोर्टफोलियो
निवेश करते समय, एक संतुलित पोर्टफोलियो बनाना न भूलें। पूरी तरह से ऋण पर या इक्विटी पर केंद्रित होने से आपका रिटर्न सीमित हो सकता है। सही संतुलन बनाए रखना जरूरी है। यदि आपको अपने एसेट्स के आवंटन से संबंधित मदद चाहिए तो आप किसी एक्सपर्ट की सलाह ले सकती हैं। जो महिलाएं अपने पुरुष समकक्षों के साथ समानता के लिए संघर्ष कर रही हैं उन महिलाओं को यह जरूर समझना चाहिए कि आजादी की शुरुआत आर्थिक आजादी से ही होती है।