700 पाकिस्तानियों पर अकेले भारी पड़े थे मेजर सोमनाथ शर्मा, पढ़ें प्रथम परम वीर चक्र पाने वाले इस जांबाज की कहानी
देश के प्रथम परमवीर चक्र पाने वाले योद्धा मेजर सोमनाथ शर्मा की शहादत पर आज पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है। 3 नवंबर, 1947 को भारत-पाक संघर्ष के दौरान बहादुरी और अपने रण-कौशल का परिचय देते हुए मेजर शर्मा शहीद हो गए थे। जम्मू-कश्मीर के बडगाम में सेना के अधिकारियों और जवानों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। मेजर शर्मा को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया था। उन्होंने 3 नवंबर 1947 को अपनी जान गंवाकर श्रीनगर एयरपोर्ट को दुश्मनों के हमले से बचाया था। इससे दो दिन पहले ही मेजर शर्मा को बडगाम भेजा गया था, जहां दुश्मन सेना कश्मीर पर कब्जे के लिए लगातार बढ़ रही थी।
बता दें कि 3 नवंबर 1947 को पाकिस्तानी ट्राइब फोर्सेज के करीब 700 जवानों ने 3 इंच और 2 इंच के मोर्टार दागकर भारतीय सेना की उस टुकड़ी पर हमला बोला था जिसका नेतृत्व मेजर शर्मा कर रहे थे। तब मेजर शर्मा ने अकेले अपने दम पर उन 700 पाकिस्तानी जवानों को रोके रखा था और अपने उच्चाधिकारियों को तुरंत अतिरिक्त सैन्यबल भेजने को कहा था। मेजर शर्मा जानते थे कि उस वक्त उनके पीछे हटने का मतलब कुछ मील की दूसरी पर स्थित श्रीनगर एयरपोर्ट पर दुश्मनों का कब्जा होना था। यही एयरपोर्ट घाटी और शेष भारत के बीच जोड़ने का एकमात्र जरिया था। लिहाजा, मेजर शर्मा सात जवानों के साथ अकेले मोर्चे पर डटे रहे थे। बाद में दुश्मनों के मोर्टार से उनके चिथड़े उड़ गए थे।
उन्होंने अपने आखिरी संदेश में हेडक्वार्टर को वायरलेस पर कहा था, “दुश्मन हमसे सिर्फ 50 गज की दूरी पर है। हम भारी संख्या में आए दुश्मनों से घिरे हुए हैं। हमारे ऊपर तेजी से हमले हो रहे हैं और हम विनाशकारी आग के नीचे हैं। मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा जब तक हमारे पास लोग हैं। मैं अंतिम दौर तक उनसे लड़ूंगा जब तक मेरे पास गोली है।” जब मेजर शर्मा शहीद हुए थे तब उनकी उम्र मात्र 24 साल थी। जेब में रखी गीता से उनके शव की पहचान की जा सकी थी।
देश बंटवारे के बाद जब कश्मीर पर पाकिस्तानियों ने हमला किया था तो 4 कुमाऊं बटालियन के मेजर सोमनाथ शर्मा के दाहिने हाथ में फ्रैक्चर था और उस पर प्लास्टर लगा था। डॉक्टर ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी लेकिन वो जिद करके मोर्चे पर चले गए। मेजर शर्मा और उनके साथी श्रीनगर एयरफील्ड से कुछ किलोमीटर दूरी पर स्थित बडगाम में एक पोस्ट पर तैनात थे। हमले के दिन से पहले सेना की तीन कंपनियों ने बडगाम की पैट्रोलिंग की थी। जब वहां दुश्मन की किसी गतिविधि की सूचना नहीं मिली तो तीनों कंपनियों को वापस भेज दिया गया था। केवल मेजर शर्मा की कंपनी को वहां दोपहर 3 बजे तक रुकने के लिए कहा गया था। उन्हें औचक हमला होने की स्थिति में हमलावरों को आगे बढ़ने से रोकना था। मेजर शर्मा की कंपनी में कुल 50 जवान थे। अचानक दोपहर के करीब 2.30 बजे 700 से ज्यादा पाकिस्तानी हमलावरों ने बडगाम पोस्ट पर तीन तरफ से हमला कर दिया था।