कूड़ा फेंकने की जगह तय करने में नोएडा प्राधिकरण नाकाम

औद्योगिक महानगर के रूप में पहचान बना चुके नोएडा में 41 साल बाद भी ठोस कचरा प्रबंधन चुनौती साबित हो रहा है। अरबों रुपए की जमीन आबंटित करने वाले नोएडा के लिए खुद के निवासियों के कूड़ा डालने की जगह चिह्नित करना नामुमकिन होता जा रहा है। वजह यह है कि प्राधिकरण जिस भी जगह को कूड़ा डालने के लिए चिह्नित कर रहा है, उसके आसपास रहने वाले लोग इसका विरोध कर रहे हैं। आधुनिक कूड़ा प्रबंधन नहीं होने से एक तरफ एनजीटी की नाराजगी, तो दूसरी तरफ निवासियों के विरोध के बीच पर्यावरण के लिए सबसे अहम कूड़ाघर (डंपिंग ग्राउंड) पर पेच फंस गया है। नोएडा प्राधिकरण ने सेक्टर-123 में इसे बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है। इसके तहत दावा किया गया है कि वहां ठोस कचरा प्रबंधन के जरिए कूड़ा फेंका नहीं जाएगा, बल्कि उसे रीसाइकिल किया जाएगा। संयंत्र से रीसाइकिल हुए कचरे का इस्तेमाल सड़क और सीमेंट बनाने में किए जाने का दावा किया गया है। इसके अलावा बदबू मिटाने और सुंदरता को बनाए रखने के लिए चारों तरफ हरित पट्टी और सीवेज शोधन संयंत्र लगाया जाएगा। हालांकि 250 करोड़ रुपए खर्च कर बनाए जाने वाले इस ठोस कचरा प्रबंधन संयंत्र को उनके घर के नजदीक बनाए जाने को कोई तैयार नहीं है।

सेक्टर-123 में डंपिंग मैदान बनाने के विरोध में रविवार को कई सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों समेत इलाके के लोगों ने विरोध किया। सेक्टर-122 के गोलचक्कर को धरना देकर उन्होंने तय किया कि कुछ भी हो जाए, यहां कूड़ाघर या कचरा प्रबंधन संयत्र स्थापित नहीं करने दिया जाएगा। मौके पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात रहा। सांसद सुरेंद्र नागर, सपा प्रत्याशी सुनील चौधरी आदि ने प्रदर्शन की अगुवाई की। लोगों ने बताया कि स्थानीय विधायक पंकज सिंह से इस मुद्दे पर बातचीत की गई है। उन्होंने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाने की मांग की है। आरोप है कि मास्टर प्लान 2031 तक इस इलाके में डंपिंग मैदान बनाने की कोई योजना नहीं है। यदि ऐसा था तो प्राधिकरण को आसपास के इलाके में रिहायशी सोसायटी नहीं बनने देनी चाहिए थी। अभी ही करीब 1.50 लाख लोग यहां रह रहे हैं। प्राधिकरण सूत्रों के मुताबिक, पूर्व तैनात अधिकारियों की कचरा प्रबंधन को लेकर उदासीनता मौजूदा परेशानी की वजह बनी है।

शहर की बेशकीमती हो चुकी जमीन के ज्यादातर हिस्से को या तो प्राधिकरण आबंटित कर चुका है, या फिर वह वैध-अवैध निर्माण की चपेट में है। मौजूदा प्राधिकरण अधिकारियों को पर्यावरण संरक्षण और एनजीटी की सख्ती भी झेलनी पड़ रही है, जिसके चलते आनन-फानन में कचरा डालने और निस्तारण संयंत्र की पहल करने से मौजूदा विरोध हो रहा है। बहरहाल, प्राधिकरण के अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी आरके मिश्रा का 250 करोड़ रुपए खर्च कर अत्याधुनिक बदबू व बीमारी रहित कचरा प्रबंधन संयंत्र स्थापित किए जाने का दावा लोगों के गले नहीं उतर रहा है।

 

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