दिल्ली: इलाज करने वाले अस्पताल ही बना रहे बीमार
अस्पतालों के जरिए फैलने वाले संक्रमण (हॉस्पिटल अक्वायर्ड इन्फेक्शन या एचएआइ) से दुनिया भर में हर साल करीब 20 लाख लोग प्रभावित होते हैं और करीब 80000 मौतें होती हैं। यह खुलासा एक ताजा अध्ययन में हुआ है। संक्रमणों के फैलने की एक वजह डॉक्टरों का आला (स्टेथोस्कोप) भी है। एक अध्ययन यह भी बताता है कि देश में जितनी मौतें बीमारियों के कारण नहीं होतीं, उससे ज्यादा संक्रमण के कारण होती हैं। भारतीय चिकित्सा परिषद (आइएमए) के मुताबिक, इसके लिए सबसे बड़ी वजह तो यही है कि देश में डॉक्टरों व मरीजों का अनुपात गड़बड़ होने से अस्पतालों में भारी भीड़ इकट्ठा हो जाती है और इन्हीं सब कारणों के चलते डॉक्टर जरूरी एहतियात नहीं बरत पाते।
डॉक्टरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सबसे महत्त्वपूर्ण उपकरणों में से एक है स्टेथोस्कोप यानी आला। यह उपकरण जीवाणुओं का अड्डा बन जाता है। इन जीवाणुओं में स्टेफिलाकोकास आॅरियस, स्यूडोमोनास एरुगिनोसा, क्लॉस्ट्रिडियम डिफिसाइल और वेंकोमाइसिन रेसिस्टेंट एंट्रोकोकी प्रमुख हैं। ये निमोनिया, मूत्र नली के संक्रमण (यूटीआइ) और त्वचा संक्रमण जैसे कई रोगों के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे में जबकि स्वाइन फ्लू का संक्रमण तेजी से फै ल रहा है और सुपरबग एक बड़ी समस्या के रूप में हमारे सामने है, तब स्टेथोस्कोप या इसी तरह के संक्रामक उपकरणों पर ध्यान देकर इसे रोका जा सकता है क्योंकि इनमें भी रोगाणु हो सकते हैं और इनसे संक्रमण भी फैल सकता है। संक्रमण नियंत्रण के दिशानिर्देशों के अभाव और पुरानी तकनीक के उपयोग से यह जोखिम लगातार बना हुआ है।
आइएमए और हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल ने कहा कि संक्रमण फैलने के पीछे कुछ आम कारण तो यह हैं कि स्वच्छता के दिशानिर्देशों का पूरी तरह पालन नहीं हो पाता और पुरानी तकनीक के उपयोग से भी समस्या बनी रहती है। अस्पताल में भर्ती होने के 48 घंटे के भीतर ही कुछ संक्रमण जांच में दिखाई देने लगते हैं। दुखद तथ्य यह है कि भारत में अस्पतालों से होने वाले ऐसे संक्रमणों के बारे में जागरूकता की कमी है। मरीज और कई बार तो अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मी भी कुछ बुनियादी स्वच्छता निर्देशों का पालन नहीं कर पाते, जिसकी वजह से इन संक्रमणों को रोकने में कठिनाई होती है। आइएमए के मानद महासचिव डॉ आरएन टंडन ने बताया कि आॅपरेशन थिएटर और गहन चिकित्सा कक्ष (आइसीयू) तक में स्वच्छता के निर्देशों का पर्याप्त पालन नहीं हो पाता है और न ही रोगी को इससे बचाने की कोई कोशिश की जाती है।
अस्पतालों में उपकरणों का रखरखाव सही से न हो पाना, कम कर्मचारी और भीड़भाड़ के कारण रोगाणु फैलते रहते हैं। जिन रोगियों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है, वे इसके सबसे आसान शिकार बन जाते हैं। इसके अलावा, डॉक्टर जीवाणुआें पर तेजी से शक्तिशाली एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करते हैं और इनमें से कई दवा-प्रतिरोधी होती हैं। डॉ अग्रवाल ने आगे बताया कि एंटीबायोटिक प्रतिरोधी रोगाणुओं के प्रभाव को देखते हुए आइएमए ने सेहत से जुड़े इस सार्वजनिक खतरे से निपटने के लिए कई तरह की पहल की है, जैसे- एंटीबायोटिक का दुरुपयोग रोकें अभियान, एंटी बायोटिक का बुद्धिमत्ता पूर्ण उपयोग करें अधिकता में नहीं और लिखने से पहले सोचें। एंटीबायोटिक्स का उपयोग कब-कब नहीं करना चाहिए, इस विषय पर आइएमए एक किताब भी तैयार करवा रहा है।