स्वास्थ्य सेवा को मौलिक अधिकार बनाने की एम्स में हुई मांग

सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा को एक राष्ट्रीय आंदोलन बनाए बिना गोरखपुर को दोहराने से नहीं रोका जा सकता। स्वास्थ्य सेवा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए चिकित्सकों को मरीजों सहित पूरे समुदाय के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मुहिम चलानी होगी। यह प्रस्ताव अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में हुए सम्मेलन में पारित किया गया। गोरखपुर के अस्पताल सहित देश भर के तमाम अस्पतालों में संसाधनों के अभाव में दम तोड़ती जिंदगियों से परेशान एम्स के संकाय सदस्यों, डॉक्टरों, रेजींडेंट और छात्रों ने चलता है कि नीति छोड़ एकजुट होकर इसके खिलाफ देशव्यापी मजबूत आंदोलन खड़ा करने की पहल की है। इसमें देश के तमाम हिस्सों में स्वास्थ्य को लेकर लड़ाई लड़ रहे विशेषज्ञ भी शामिल रहे। चिकित्सकों ने गैस्ट्रोलाजी विभाग के मुखिया डॉ. अनुप सराया की अगुआई में शुरू किए गए इस सम्मेलन में कहा कि जिस देश में सड़क, बिजली और पानी को लेकर आंदोलन हो सकता है, उस देश में रोज मरते रह कर भी समाज में स्वास्थ्य क ो लेकर कोई क्यों नहीं उठ खड़ा होता है। जहां निजता को मौलिक अधिकार का दर्जा मिल सकता है, वहीं स्वास्थ्य यानी जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार क्यों नहीं बनाया जा रहा? यह सवाल तभी हल होंगे जब हम लड़ना सीखेंगे।

प्रस्ताव में कहा गया कि देश में स्वास्थ्य सेवा को लेकर काम कर रहे लोगों को एकजुट करके एक मंच से जोरदार लड़ाई लड़नी होगी। सभी क ो स्वास्थ्य के कई पहलू हैं। प्रस्ताव में कहा गया कि सरकार पर दबाव बनाया जायगा कि वह स्वास्थ्य का बजट बढ़ाए। प्रस्ताव में स्वास्थ्य सेवा को सुधारने के सरकारों के झूठे बयानों की निंदा की गई और कहा गया कि पिछले दो दशक से गोरखपुर में बच्चे लगातार मर रहे हैं। कभी जापानी बुखार से तो कभी मेंनिजाइटिस से लेकिन इसकी किसी को कोई परवाह नहीं है। प्रस्ताव में उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के हालिया बयान की भी निंदा की गई जिसमें उन्होंने अगस्त में बच्चों के मरने को आम बताया था। साथ ही कहा कि मौजूदा सरकार की इस दिशा में काम करने की मंशा तक नहीं है। न ही वह इस दिशा में कुछ भी करना चाहती है। यह अब तक की नीतियों से साफ है। जेएनयू के सेंटर फोर सोशल मेडिसिन के प्रोफेसर मोहन राव ने कहा कि जन भागीदारी से खड़ी मुहिम ही इसे सफल बना सकती है। लोगों को उनके हकों के लिए जगाना ही होगा। इसी विभाग के डॉ. विकास वाजपेयी ने देश के तमाम स्वास्थ्य केंद्रों की अांखों देखी हालत बयां करते हुए कहा कि कागजों व फाइलों में दर्ज तथ्य भी जमीन पर नजर नहीं आते। उन्होंने स्वास्थ्य सेवा व शिक्षा के व्यवसायीकरण का भी विरोध किया।

मौजूदा सरकार की नई स्वास्थ्य नीति की खामिया गिनाते हुए उन्होंने कहा कि जिन बातों को कभी स्वास्थ्य के जनआंदोलनों में सरकार के खिलाफ आरोप की तरह उठाते थे, उनको आज की स्वास्थ्य नीति में सरकार अपनी पीठ ठोंकते हुए बताती है। मसलन स्वास्थ्य के निजाकरण का हम विरोध करते रहे पर आज सरकार निजी अस्पतालों व स्वास्थ्य पर्यटन क ो जीडीपी को मजबूती देने वाले क्षेत्र कहक र उनको रियायत देती है। बदलती प्राथमिक ताओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जब अपोलो बना था तब यह पुरी तरह सरकार के नियंत्रण में था व मकसद गरीबों को भी सेवा देना था। लेकिन आज यह पूरी तरह अधिक से अधिक मुनाफा कमाने का अड्डा है। एम्स शुल्क समिति के सदस्य डॉ. प्रताप शरण ने कहा कि दुनिया भर के अनुभव बताते हैं कि स्वास्थय सेवा पर शुल्क लगाने से मरीजों की पेरशानी ही बढ़ी है और इससे भारत में 60 फीसद लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए जबकि काफी मरीज इसी वजह से इलाज कराने से कतराते हैं। एम्स आरडी के अध्यक्ष हरजीत भट्टी ने कहा कि देश में चिकित्सको की चिंताजनक रूप से कमी है और यह बात 11 साल पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हमें बता दी थी और तब से आज तक सूरत नहीं बदली है।

गावों में केवल 10 फीसद मेडिकल अफसर हैं। जहां हमें काम करने भेजा जाता है, वहां एक ही कुएं पर जानवरों व इंसानों के नहाने पीने का काम चलता है। न रहने का इंतजाम है न काम करने का। गांवों में इमरजेंसी सेवा तो भूल ही जाइए। गावों से मरीज को रेफर करने के भी एंबुलेंस नहीं हैं और हमारी सरकार छाती ठोक कर खुश होती हैं कि हम दिल्ली से सेन्फ्रांसिस्को के लिए सीधी विमान सेवा शुरू कर दी है। जहां देश की 70 फीसद आबादी है, वहां 25 फीसद भी बिस्तर नही हैं। देश में हर साल तीन लाख युवाक डॉक्टर बनने से रोक दिए जाते हैं। देश मे कम से कम 500 मेडिकल कॉलेज की जरूरत है। 75 फीसद डॉक्टर हिंसा का शिकार होते हैं। इन सभी के लिए आवाज उठानी होगी। एम्स शोध विंग के अगुआ डॉ. विशाल साहू ने शोध क्षेत्र की उपेक्षा पर रोशनी डाली और कहा कि हर दवा के लिए हम विदेशियों का मुंह ताकते हैं। जबकि हमारे लोग ही वहां जाकर उत्कृष्ट काम कर रहे हैं। श्रमजीवी स्वास्थ्य उद्योग के डॉ. सुजय बाला ने कहा कि गरीब देश भी स्वास्थ्य क्षेत्र में बेहतर काम कर रहे हैं और अमीर देश भी जितना नहीं कर पा रहा हैं। इसी तरह सरकारी बजट से ही इसे दुरुस्त किया जा सकता है निजी सेवा क्षेत्र में केवल लूट है।

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