बाटी-दाल-चोखा

मुख्य रूप से बाटी तीन तरह से बनाई जाती है। एक, आटे में चने का सत्तू या मटर, आलू वगैरह भर कर आग पर पकाई जाती है। दूसरी, बिना कुछ भरे, आटे की गोल लोइयां बना कर सीधे आग पर पका ली जाती है और तीसरी, आटे में सत्तू भर कर तेल में पूड़ी की तरह तल ली जाती है।
आमतौर पर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में सत्तू वाली बाटी पसंद की जाती है। बगैर कुछ भरे बनाई जाने वाली बाटी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों, राजस्थान और मध्यप्रदेश में खाई जाती है। इसके साथ दाल, चोखा, रायता और अचार खाया जाता है।

बाटी बनाने की विधि

सत्तू वाली बाटी बनाने में असल कौशल सत्तू का भरावन तैयार करने में होता है। सत्तू का भरावन तैयार करने के लिए चने का सत्तू लें। यह बाजार में आसानी से मिल जाता है। न मिले तो भुने हुए चने को मसाला पीसने वाले मिक्सर में डाल कर सत्तू तैयार किया जा सकता है। सत्तू को छान लें। एक बाटी में बीस से पच्चीस ग्राम सत्तू की जरूरत होती है। उसी हिसाब से सत्तू लें। बड़े आकार का एक प्याज, आठ-दस लहसुन की कलियां, चार-पांच हरी मिर्चें और अदरक का एक टुकड़ा बारीक-बारीक काट लें। सत्तू में इन सबको डाल दें। फिर एक चम्मच अजवाइन के दाने और एक चम्मच कलौंजी यानी अनियन सीड्स डालें। स्वाद के मुताबिक नमक मिलाएं। फिर दो नींबू निचोड़ कर उसका रस और चार-छह चम्मच सरसों का कच्चा तेल डालें। इन सबको देर तक मसलते हुए मिलाएं। दोनों हथेलियों पर रख कर बार-बार मलें, ताकि नींबू का रस और सरसों तेल पूरे सत्तू में ठीक से मिल जाए। मुट्ठी में भर कर बांधें और देखें- सत्तू लड्डू की तरह बंध रहा है, तो भरावन सही तैयार है। मुट्ठी नहीं बंध रही है, तो एक नींबू निचोड़ कर उसका रस और डाल दें। सरसों का तेल अधिक न डालें, नहीं तो स्वाद कड़वा हो सकता है।

अब आटा तैयार करें। आटा गूंथते समय उसमें एक गिलास दूध और दो चम्मच देसी घी डाल लें। आटा मलते हुए घी और दूध को अच्छी तरह मिला लें।
फिर पानी के छींटे देते हुए आटा गूंथ लें। ध्यान रखें कि आटा ज्यादा नरम न हो। अब आटे की लोइयां बना कर अंगूठे से गड्ढा बनाते हुए फैला लें और उसमें एक से डेढ़ चम्मच भरावन डाल कर बंद कर लें। बाटी को गोल आकार में ही रखें। अब बाटियों को आग पर पलटते हुए पकाएं। शहरों में आग जलाने की जगह नहीं है, इसलिए समस्या आती है कि बाटी कैसे सेंकें। ओवन में (माइक्रोवेब में नहीं) भी बाटी पका सकते हैं। अगर आपके पास कुकिंग रेंज है, तो गैस के ओवन में भी बाटी पकाई जा सकती है। वैसे चिकन ग्रिल करने वाले ओवन में बाटी बहुत अच्छी तरह पकती है। इन सबमें से कोई साधन उपलब्ध नहीं है, तो कुकर में भी बाटी पका सकते हैं। कुकर की सीटी निकाल दें। कुकर में दो चम्मच घी डालें और गरम करें। उसमें बाटी डाल कर पका लें। कुकर में बाटी पकाते समय थोड़ी-थोड़ी देर बाद उन्हें पलटते रहें।

सत्तू वाली बाटी

टी को तल कर बनाने में भी सत्तू का भरावन आग पर पकाने वाली बाटी की तरह ही तैयार किया जाता है। उसमें बाटी का आकार थोड़ा छोटा रखा जाता है और भरावन भरने के बाद बाटी को हथेलियों के बीच दबा कर चपटा कर लिया जाता है। फिर उन्हें मद्धिम आंच पर सरसों तेल या रिफाइंड में सुनहरा होने तक तला जाता है। इस बाटी को ठंडा होने के बाद भी खाया जा सकता है।

तली हुई बाटी

खा तैयार करने के लिए चार-पांच आलू उबाल लें। अगर आग पर बाटी बना रहे हैं, तो उसी आग में आलुओं को पका लें। फिर एक बड़ा या दो छोटे गोल बैंगन लें। उनमें चाकू से छेद कर आग पर भून लें। तीन-चार टमाटर भी आग पर भून लें। अब एक छोटा प्याज, सात-आठ लहसुन की कलियां, अदरक, हरी मिर्चें, धनिया पत्ता बारीक-बारीक काट लें।

’आलू, बैंगन और टमाटरों के छिलके उतार लें। उनमें प्याज, लहसुन, अदरक, धनिया पत्ता, कटी मिर्चें डालें। ऊपर से नमक, आधा चम्मच अजवाइन और आधा चम्मच कलौंजी डालें। एक से डेढ़ चम्मच कच्चा सरसों तेल डालें और सारी सामग्री को फोर्क या हाथों से मसलते हुए तब तक मिलाएं, जब तक कि आलू, बैंगन और टमाटर पूरी तरह मसल न जाएं। चोखा तैयार है।’दाल: बाटी के लिए दाल आमतौर पर चने, उड़द और मसूर को मिला कर मसाले वाली, थोड़ी तीखी और गाढ़ी तैयार की जाती है। इसमें हींग, जीरा, लाल मिर्च और लहसुन का तड़का लगाएं।

चोखा / दाल

गैर भरावन वाली बाटी के लिए घी और दूध से गूंथे आटे की गोल-गोल लोइयां तैयार करें। चाहें तो बीच में खोखला रखते हुए भी बाटी को आकार दे सकते हैं। इन्हें आग पर सिंकने वाली बाटी की तरह ही बनाएं। इस बाटी को चोखा, दाल, रायता और अचार के साथ परोसें।
’ध्यान दें- आग पर या ओवन में सेंक कर बनी बाटी पर देसी घी लगाना न भूलें।

बगैर भरावन की बाटी

बाटी खासकर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में खाई जाती है। इसके अलावा राजस्थान और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में भी पसंद की जाती है। दरअसल, यह चरवाहों का भोजन है। जिस प्रकार इटली के चरवाहे मोटी रोटी पर मक्खन और सब्जियां रख कर खाया करते थे और वही बाद में पित्जा के रूप में दुनिया भर में व्यंजन की तरह फैल गया उसी तरह राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश के चरवाहों ने बाटी बनाने की विधि विकसित की।
बाटी और चोखा पकाने के लिए बहुत बर्तनों, चूल्हे-चौके की आवश्यकता नहीं पड़ती। आटा गूंथा, उसमें भरावन डाला या नहीं भी डाला और उपले की आग पर सीधा पका लिया। इसी तरह आलू-बैंगन वगैरह को सीधा आग में भूना और चोखा बना लिया। केले, कमल या पलाश के पत्ते पर रख कर खा लिया। मगर अब बाटी-दाल-चोखा-चूरमा ने बड़े शहरों के रेस्तरां की खाद्यसूची में भी अपनी जगह बना ली है।

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