गजब की चुप्पी साधे है मतदाता, दिग्गजों के होश फाख्ता
हालांकि पिछले कुछ चुनावों से प्रचार की फिजां बदली है मगर इस बार तो बात ही कुछ और है। प्रचार का मंजर काफी बदला हुआ है। मीलों तक चलते रहने पर भी यह अहसास नहीं होता कि प्रदेश में चुनाव हो रहे हैं। इक्का दुक्का पोस्टर ही कहीं कहीं चस्पां आते हैं तो झंडों की भी ऐसी मारामारी नहीं जो कालांतर के चुनावों में देखी जाती थी। ऊपर से मतदाता जिसे चालाक कहना तो सही नहीं होगा मगर कह सकते हैं कि इतना अधिक समझदार हो गया है कि वह पूछने वाले से ही उल्टा सवाल करता है कि आप बताओ पहले कि आप किसे वोट दे रहे हैं। सीने पर किसी दल का बिल्ला चिपकाए कार्यकर्ता ही अपने दल की मुखर होकर अपने नेता या दल की वकालत करता नजर आ रहा है। आम मतदाता तो ऐसा अहसास दिला रहा है जैसे उसे चुनावों से कोई लेना देना ही नहीं है। शहरों में फ्लेक्स होर्डिंग का दबदबा जरूर बढ़ा है। इसके लिए विज्ञापन एजंसियों को खूब पैसा दलों ने दिया है। भाजपा-कांग्रेस ने इसमें कोई कसर बाकी नहीं रखी है मगर चुनाव आयोग की सख्ती के कारण दीवार लेखन, पोस्टरबाजी व झंडों की बहार कहीं पहले की तरह देखने को नहीं मिल रही। भाजपा ने काफी पहले दीवार लेखन करके बढ़त ले ली थी और ऐसी जगहों पर जहां किसी को एतराज न हो या फिर भवन मालिक सहमत हो वहां पर ‘अबकी बार भाजपा सरकार’ का नारा पूरे प्रदेश में काफी पहले ही लिखा लिया था मगर कांग्रेस ऐसा नहीं कर पाई। अब चुनावों के दौरान इस तरह का दीवार लेखन नाममात्र ही नजर आ रहा है जबकि पहले चुनावों में क्या सरकारी क्या निजी, सारी दीवारें व खाली जगहें नारों से पट जाती थी जो सालों तक इसी तरह से अटी पटी रहती थी।
यही हाल पोस्टरों का भी है। इस बार पोस्टर नगण्य से हैं। प्रिटिंग प्रेसों में काम एक चौथाई भी नहीं रह गया है। केवल फलेक्स होर्डिंग बनाने वाली प्रेसों में ही काम बढ़ा है। उम्मीदवार मतदाताओं के घर-घर जाने के लिए एक आध अपील छपवाकर काम चला रहे हैं। गले में पटके व सिर पर टोपी के साथ साथ नेताओं के मुखौटे जिनमें प्रदेश भर में केवल नरेंद्र मोदी के ही अधिकांश देखे गए हैं, पर खूब पैसा दलों ने खर्चा है। भाजपा-कांग्रेस के लिए हाइकमान से भी छपी हुई सामग्री आई है जिसे बांटा जा रहा है मगर दीवारें लगभग सूनी पड़ी है। पहले चुनावों में एक-एक उम्मीदवार पेड कार्यकर्ताओं के कई-कई दल तैनात रखता था। कई पार्टियां रात रात भर पोस्टरों को चस्पां करती थीं। इनमें कुछ खास टोलियां ऐसी भी बनाई जाती थीं जो रात के समय विरोधी दल के नेताओं के पोस्टर फाड़ने का ही काम करते थे अब ऐसा कुछ नहीं है। अब कार्यकर्ताओं के लिए धामें भी ज्यादा नहीं पक रही हैं क्योंकि ये सारे खर्चे अब चुनाव खर्चे में जुड़ जाते हैं।
अब जबकि मतदान के लिए घंटों के हिसाब से समय रह गया है, उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है तो भी हिमाचल प्रदेश के मतदाता ने गजब की चुप्पी साध रखी है। यह चुप्पी कितनी खतरनाक साबित होगी इसकी कल्पना से उम्मीदवार और उनके समर्थक डरे सहमे हुए हैं। उम्मीदवार यही समझ नहीं पा रहे हैं कि कौन उनके साथ है और कौन उनके विरोधी का समर्थक है।