क्रोधित होकर चली गई थीं माता लक्ष्मी, जानिए क्या है समुद्र मंथन की कथा

समुद्र मंथन के लिए अनेकों कथाएं प्रचलित हैं कि असुरों और देवों में हमेंशा शक्तिशाली होने के लिए युद्ध रहता था। लेकिन समुद्र मंथन के पीछे की कथा आज हम आपको बताने जा रहे हैं। एक बार भगवान शिव के दर्शन के लिए दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ कैलाश जा रहे थे। रास्ते में इन्द्र देव के मिलने पर उन्होनें भगवान विष्णु का पुष्प आशीर्वाद के रुप में दिया। इन्द्र देव ने अपने गर्व में उस पुष्प को ऐरावत हाथी के मस्तक पर रख दिया। पुष्प रखते ही ऐरावत भगवान विष्णु जितना तेजस्वी हो गया और इन्द्र देव को छोड़कर भगवान विष्णु का पुष्प कुचलकर चला गया। ये अपमान दुर्वासा ऋषि से सहन नहीं हुआ और उन्होनें इन्द्र देव को लक्ष्मी विहिन होने का श्राप दे दिया। माता लक्ष्मी के रुष्ट होने के बाद सभी देवताओं की शक्ति विलुप्त हो गई और इसी का फायदा उठाकर दैत्यों ने स्वर्गलोक पर कब्जा कर लिया। सभी देवता और इन्द्र ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे सलाह देने के लिए कहा कि ऐसा क्या किया जाए कि माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाए और सभी देवों का पराक्रम वापस आ जाए।

ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम लोगों को भगवान विष्णु के पास जाकर उनसे सहायता लेनी चाहिए। क्षीरसागर में एक अमृत क्लश है उस अमृत को पीने से आप सभी फिर से पराक्रमी हो जाएंगे। सभी देवगण भगवान विष्णु के पास जाते हैं और उनसे कहते हैं कि प्रभु इस तरह की दुर्घटना हो गई है कृपा उनकी सहायता करें। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने के लिए मान जाते हैं और कहते हैं कि अमृत क्लश निकालने के लिए समुद्र मंथन करना होगा और ये कार्य बहुत ही मुश्किल है। इसे करने के लिए आपको दैत्यों की भी आवश्यकता होगी और इस काम को करने के लिए दैत्यों से समझौता करना होगा। इसके बाद सभी देव दैत्यों के राजा बलि के पास जाते हैं और उनसे कहते हैं कि क्षीरसागर में मौजूद रत्नों का लालच उन्हें देते हैं और कहते हैं कि आप अगर पराक्रमी बनना चाहते हैं तो आपके लिए ये बहुत लाभदायी होगा और कहते हैं कि अलग युद्ध करने से अच्छा है कि साथ में मिलकर इस संसार को चलाएं, इस तरह की बातों में असुर दैत्य राजा बलि को लालच दिला कर वो समुद्र मंथन में सहायता के लिए मना लेते हैं।

समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को नेती बनाया गया। भगवान विष्णु ने कच्छप का अवतार लेकर पर्वत को अपने पीठ पर उठा लिया। इसके बाद देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथना शुरु किया। जिसमें समुद्र से सबसे पहले विष निकलने लगा। जिसके कारण समुद्र में मौजूद देवता और असुर बेहोश होने लगे और उनकी शक्तियां खत्म हो गई। विष को फैलने से रोकने के लिए भगवान शिव क्षीर सागर में उतरे और सागर में फैले विष का उन्होनें पान कर लिया। उनके इस विष को माता पार्वती ने उनके कंठ में बैठ कर वहां से नीचे नहीं जाने दिया। जिससे उन्हें ब्रह्मा जी ने नीलकंठ का नाम दिया। विष पीने के बाद भगवान शिव ने मंथन पुनः शुरु करवाया। इसके बाद समुद्र से कई रत्न निकले। मंथन के दौरान ही माता लक्ष्मी प्रकट हुई और सभी देवी-देवताओं का वैभव लौट आया। इसके बाद अंत में वैद्यों में सबसे उत्तम धनवंतरि अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए। इस प्रकार से समुद्र मंथन से अमृत प्रकट हुआ।

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