नोटबंदी: मंत्री बता रहे हैं नरेंद्र मोदी की जीत, पर मुहर नहीं लगा रहे आंकड़े

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल आठ नवंबर को नोटबंदी की घोषणा की थी। रात आठ बजे पीएम मोदी ने देश को बताया कि उसी रात 12 बजे से 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट बेकार (मूल्यहीन) रद्दी के समान हो जाएंगे। एक साल बाद भी इस बात को लेकर बहस जारी है कि नोटबंदी का फैसला जनहित में था या नहीं। मंगलवार (सात नवंबर) को ट्विटर पर #DeMoWins हैशटैग ट्रेंड करने लगा। नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्री और बीजेपी नेता इस हैशटैग से नोटबंदी को पीएम मोदी की जीत बताने लगे। वहीं बहुत से लोग इसी हैशटैग से  नोटबंदी को जनविरोधी और अर्थव्यवस्था को पीछे धकेलने वाला बताकर इस पर तंज कसने लगे। आइए एक नजर डालते हैं नोटबंदी से जुड़े आंकड़ों पर ताकि हम ये समझ सकें कि ये सचमुच कितना सफल या कितना विफल रही?

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार नवंबर 2016 में भारत सरकार के तत्कालीन एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि सरकार को उम्मीद है कि करीब 4-5 लाख करोड़ रुपये का कालाधन नोटबंदी से सामने आएगा। जब पीएम नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी लागू की तो करीब 15.44 लाख करोड़ रुपये बंद किए गये 500 और 1000 रुपये के नोटों के रूप में प्रचलन में थे। ये राशि देश में चलन में मौजूद कुल नकद राशि का करीब 86 प्रतिशत थी। मुकुल रोहतगी के जवाब के अनुसार उस समय मोदी सरकार को बंद किए गये नोटों की करीब 25 प्रतिशत राशि के कालेधन के रूप में सामने आने की उम्मीद थी। लेकिन नोटबंदी के करीब 11 महीने बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने नोटबंदी में वापस आये बंद किए गये नोटों का ब्योरा दिया और बताया कि करीब 99 फीसदी बंद किए गये नोट बैंकों और डाकघरों के माध्यम से वापस आ गये हैं।

नरेंद्र मोदी सरकार का दावा है कि नोटबंदी के बाद विभिन्न संस्थाओं द्वारा मारे गये छापे और अन्य कार्रवाइयों से करीब एक हजार करोड़ रुपये जब्त किये गये। सरकार ने करीब 17,526 करोड़ रुपये की अघोषित आय के सामने आने की भी घोषणा की। इसके अलावा करीब 35 हजार मुखौटा कंपनियों के करीब 17 हजार करोड़ रुपये भी सरकारी की जाँच के दायरे में हैं। रिपोर्ट के अनुसार अगर ये सारी राशि जोड़ दें तो भी बंद किए नोटों की कुल राशि का ये करीब दो प्रतिशत ही होगा।

रिपोर्ट के अनुसार अगर नोटबंदी के साल की उसके पहले के सालों से तुलना करें तो अघोषित आय के आंकड़ों में कोई बड़ा अंतर नहीं दिखेगा। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2012-13 में 19,337 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2013-14 में 90,391 करोड़ रुपये की अघोषित आय सामने आयी थी। आयकर विभाग के अनुसार विभिन्न बैंकों के करीब 13 लाख खाते जांच की जद में हैं। इन खातों में करीब 2.3 लाख करोड़ रुपये की राशि है। लेकिन अभी तक ये साफ नहीं हुआ कि इसमें से कितनी राशि कालाधन है? कैग रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2013-14 में विभिन्न बैंकों में जमा 2.87 लाख करोड़ रुपये की गैर-कानूनी होने की आशंका में जांच की गयी थी। वहीं वित्त वर्ष में 2014-15 में ये राशि 3.83 लाख करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2015-16 में 5.16 लाख करोड़ रुपये राशि की गैर-कानूनी होने की आशंका के चलते जांच की गयी थी। यानी इस मामले में हो रही जाँच पर नोटबंदी का कोई खास असर नहीं प्रतीत हो रहा।

नोटबंदी लागू करने के पक्ष में एक बड़ी दलील ये दी गयी थी कि इससे नकली नोटों पर लगाम लगेगी। एनडीटीवी के अनुसार वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जुलाई में ससंद में जानकारी दी थी कि नोटबंदी के बाद करीब 11.23 करोड़ रुपये के नकली नोट जब्त किए गये हैं। ये राशि बंद किए गये नोटों का करीब 0.0007 प्रतिशत हुई। रिजर्व बैंक के अनुसार वित्त वर्ष 2016-17 में करीब 43 करोड़ रुपये मूल्य के नकली नोटों का पता चला। ये भी बंद किए गये नोटों का करीब 0.0002 प्रतिशत ही हुआ।

नोटबंदी के समय सरकार ने इससे आतंकवाद पर लगाम लगने की भी बात कही थी। साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल आतंकवाद से जुड़े मामलों के आंकड़ों का हिसाब रखता है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी से 10 महीने पहले और उसके 10 महीने बाद के आंकड़ों की तुलना करें तो नोटबंदी के बाद आतंकवादी घटनाओं में करीब 38 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई। नोटबंदी के बाद आतंकवादी हमलों में मारे जाने वाले आम नागरिकों की  संख्या में करीब 2500 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। वहीं नोटबंदी के बाद के 10 महीनों में आतंकवादी हमलों में मारे जाने वाले सुरक्षा बलों की संख्या में दो प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी के बाद नक्सल प्रभावित इलाकों में इसकी वजह से मारे जाने वाले आम नागरिकों की संख्या में 45 प्रतिशत की कमी आयी लेकिन इन इलाकों में तैनाती के दौरान मारे जाने वाले सुरक्षा बलों की संख्या में कीरब 82 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।

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