उत्पन्ना एकादशी 2017: जानिए क्या है इस एकादशी का महत्व और किस विधि से व्रत करने से मिलेगा लाभ
कार्तिक माह की पूर्णिमा के बाद मार्गशीर्ष माह के 11 वें दिन को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। ये देवउठना एकादशी के अगली एकादशी होती है। एकादशी सभी एकादशी में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन देवी एकादशी का जन्म हुआ था। सभी एकादशी के व्रत भगवान विष्णु की इस शक्ति को समर्पित किए जाते हैं। देवी एकादशी भगवान विष्णु की एक शक्ति का रुप हैं। उन्होनें राक्षस मुर का इस दिन उत्पन्न होकर वध किया था। इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। राक्षस मुर ने भगवान विष्णु को नींद में मारने का प्रयास किया था। इसलिए देवी एकादशी को विष्णु की सभी शक्तियों में से एक शक्ति माना जाता है। देवी वैष्णवी भी विष्णु की शक्ति का रुप हैं। जो लोग हर माह एकादशी का व्रत करते हैं वो इस दिन से अपना व्रत शुरु करते हैं।
व्रत विधि-
एकादशी का व्रत दशमी की रात्रि से प्रारंभ हो जाता है, जो द्वादशी के सूर्योदय तक चलता है। कुछ लोग दशमी के दिन ये व्रत प्रारंभ करते हैं इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। इस व्रत में चावल,दाल किसी तरह का अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य मिलता है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि के बाद भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। व्रत कथा का पाठ करने से इस दिन व्रत सफल होता है। कई लोगों इस दिन निर्जला उपवास करने की मान्यता मानते हैं। इसके साथ ही देवी एकादशी का पूजन किया जाता है।
पूजा और कथा के बाद ब्राह्मणों, गरीबों और अन्य किसी जरुरतमंद को दान किया जाना शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु को विशेष भोग लगाया जाता है। रात्रि में दीपदान किया जाता है और इस रात को जागकर भजन-कीर्तन आदि किया जाना शुभ माना जाता है। एकादशी का व्रत करने वाले इस दिन को बहुत ही शुभ मानते हैं और अपनी श्रद्धानुसार व्रत विधि का पालन करते हैं। एकादशी का व्रत द्वादशी का सूरज उगने के बाद ही तोड़ा जाता है। इससे पहले व्रत खोलने से व्रत का फल अधूरा रह जाता है और व्रत भी पूर्ण नहीं होता है।