14 नवंबर: इस विलक्षण वैज्ञानिक को भी तो करें याद
डॉ. शुभ्रता मिश्रा
आज पूरा देश हर साल की तरह देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु का जन्मदिन बाल दिवस के रुप में मना रहा है। पर बच्चे शायद कम जानते होंगे कि आज के ही दिन भारत के महान वनस्पती शास्त्र वैज्ञानिक बीरबल साहनी जी का भी जन्मदिन है। उनका जन्म 14 नवम्बर 1891 को हुआ था। प्रोफसर बीरबल साहनी को ‘भारतीय पुरा-वनस्पति का जनक’ माना जाता है। म्यूनिख से प्रसिद्ध वनस्पति शास्त्री प्रो के गोनल के निर्देशन में शोध करने वाले प्रोफेसर साहनी ने फासिल्स प्लांट पर लंदन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधी प्राप्त की थी। उन्होंने भारत में भूगर्भ विज्ञान और वनस्पति विज्ञान को जोड़कर जीवाश्मों के माध्यम से वनस्पति विज्ञान को एक नया आयाम प्रदान किया। 1933 में लखनऊ विश्वविद्यालय में खुले नये वनस्पति शास्त्र के अध्यक्ष और डीन पद पर के रूप में नियुक्त हुए बीरबल साहनी ने भारतीय वनस्पति अवशेषों पर गहन व अद्भुत शोध कार्य किए।
उन्होंने विभिन्न कोयले के भंडारो से लेकर बिहार की राजमहल पहाड़ियों के ऊपरी गोंडवाना क्षेत्रों और दक्षिण की इंटरट्राफी प्लेटो तक और भी जाने कितने अनछुए भागों में शोध करते हुए अनेक अविश्वसनीय, अकल्पनीय एवं रोचक पौधों को सारी दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया। आज भारत के बच्चे अपने इस महान वैज्ञानिक को भी जानें और उनसे प्रेरणा लें कि किस तरह एक महान भारतीय वैज्ञानिक ने वनस्पति विज्ञान और भू विज्ञान विषयों की अपनी विद्वता के बल पर पेलियोबॉटनी यानि पुरावनस्पतिविज्ञान जैसी नई शाखा भारत के बच्चों के लिए शोध के लिए दी है।
बच्चे इस बात को समझें कि जीवित वनस्पतियों के अलावा जीवाश्मों के माध्यम से भी युगों पुराने पेड़ पौधों के बारे में भी जाना समझा जा सकता है। भारतीय बच्चों को मालूम होना चाहिए कि उनके देश के इस महान वैज्ञानिक ने एक वनस्पतिशास्त्री होते हुए भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हड़प्पा, मोहनजोदड़ो एवं सिन्धु घाटी की सभ्यता के बारे में अनेक जानकारियां दी हैं। सदैव प्रसन्न मुद्रा में मिलने वाले बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न विराट व्यक्तित्व के धनी डॉ बीरबल साहनी एक महान देशभक्त भी थे। वे हमेशा खादी का पजामा, सफेद शेरवानी और गाँधी टोपी पहना करते थे। सरल शांत स्वभाव वाले प्रोफेसर साहनी ने देश के लिए अनेक वनस्पति वैज्ञानिक दिए हैं।
पंडित नेहरु और बीरबल साहनी का जन्मदिन ही एक दिन नहीं पड़ता, बल्कि वे दोनों अच्छे मित्र भी थे क्योंकि पं. नेहरु भी कैम्ब्रिज में पुरा वनस्पति के छात्र थे। पंंडित जवाहर लाल नेहरु ने लखनऊ में बीरबल साहनी संस्थान की आधारशिला रखी थी, जो प्रोफेसर साहनी का सबसे बड़ा सपना था। उनका मानना था कि पुरावनस्पति विज्ञान पर प्रो बीरबल साहनी एवं उनकी सावित्री साहनी और उनके शिष्यों द्वारा जो मूल जीवाश्म संग्रह किए गए थे, वे पीढ़ियों तक भारतीय बच्चों के लिए काम आते रहें। बच्चे नए नए शोध करते रहें। इस संस्थान की स्थापना 10 सितंबर, 1946 को हुई। इसके प्रथम मानित निदेशक बीरबल साहनी को ही बनाया गया। भारत सरकार ने इस संस्थान के लिए 3.5 एकड़ भूमि भी आवंटित की थी। डॉ. साहनी अपने संस्थान और अपने पुरावनस्पतिविज्ञान विषय के लिए सतत् एक कर्मयोद्धा की भांति लखनऊ में कार्य करते रहे। 10 अप्रैल 1949 को दिल का दौरा पङने से महान वैज्ञानक डॉ. बीरबल साहनी स्वर्ग सिधार गए।
मद्रास के वनस्पति शाखा की प्रयोगशाला में निदेशक रहे प्रोफेसर बीएस सदासून ने बीरबल साहनी की स्मृति में गोल्ड मेडल देने की परम्परा शुरु की। पुरावनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में श्रेष्ठ वैज्ञानिकों को यह मेडल आज भी प्रदान किया जाता है। आज बालदिवस पर बच्चों को यह प्रण लेना चाहिए कि वे बीरबल साहनी के जीवन से प्रेरणा लें और उनके वैज्ञानिक सपनों को सदैव जीवंत बनाए रखें।