दो प्रधानमंत्रियों की पसंदीदा सैरगाह रही है मनाली

कमलेश वर्मा 

विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी मनाली देश के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों पं. जवाहर लाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी की बार-बार की यात्राओं के कारण देश-विदेश में चर्चा का केेंद्रबिंदु रही है। एक ओर जहां मनाली के प्रीणी में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना आशियाना बनाया हुआ है वहीं दूसरी ओर देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू का भी प्रदेश के इस क्षेत्र से खास लगाव रहा है। नेहरू जब पहली बार मनाली आए थे तो उस समय उनके द्वारा प्रयोग की गई चीजों को आज भी धरोहर की तरह संभालकर जंगली साहब की कोठी में रखा गया है। विश्व धरोहर गांव नग्गर में भी नेहरू का आना-जाना रहता था। नेहरू अकसर नग्गर स्थित आर्ट गैलरी में भी घूमने जाते थे। अंग्रेजों की बनवाई गई जंगली साहब की कोठी में हालांकि हल्का परिवर्तन किया गया है, लेकिन भवन के मूल ढांचे से छेड़छाड़ नहीं की गई है। परिधि गृह को समय के अनुसार आधुनिक बनाने की मुहिम में भवन के पुराने कुछ कमरों और बरामदों को उखाड़कर डायनिंग हॉल व बाथरूम का निर्माण किया गया है।

अंग्रेजों ने इस विश्राम गृह का निर्माण मनाली के मध्य ऐसे स्थान पर किया था, जहां से कुल्लू की तरफ पूरी पर्वत शृंखलाओं का खूबसूरत नजारा दिखता है। लेकिन अब बहुमंजिला निर्माणों के कारण इस खूबसूरती पर ग्रहण लग गया है। नेहरू से जुड़ी यादों के संदर्भ में कोठी गांव के बुजुर्गों ने बताया कि जब नेहरू लाहुल स्पीति जाते थे तब वे कोठी स्थित जंगली साहब की कोठी में ठहरते थे। यहां से वह घोड़ों पर सवार होकर लाहुल निकलते थे। उन्होंने बताया कि वर्ष 1958 में नेहरू लगभग एक महीने के लिए मनाली आए थे। उनके आगमन से पूर्व मनाली में शौचालय के लिए आधुनिक सीटों का इस्तेमाल नहीं होता था। उस समय प्रधानमंत्री की व्यवस्था के लिए फर्नीचर व सीट लगवाने के लिए अमृतसर से अधीक्षण अभियंता बसंत सिंह विशेष रूप से मनाली आए। वहीं, नेहरू की ओर से इस्तेमाल में लाए गए चांदी के टी सेट, चम्मच, चीनी मिट्टी के बर्तन व अन्य वस्तुओं को आज भी यहां एक अलमारी में सहेज कर रखा गया है।
पंचशील समझौते के गवाह बने कुल्लू-मनाली

नेहरू ने कुल्लूू-मनाली में भारत-चीन के बीच हुए समझौते की नींव रखी थी। इसे पंचशील के नाम से जाना जाता है। यहां की शांत वादियों से ही पंचशील का ताना-बाना बुना गया था। नेहरू की आत्मकथा पर आधारित पुस्तक डिस्कवरी आॅफ इंडिया में भी इसका स्पष्ट उल्लेख है। पुस्तक के पृष्ठ 364 पर उन्होंने इस बात का जिक्र किया है कि वह तब क्रिप्स मिशन की विफलता से परेशान और मायूस थे। ऐसे में उन्होंने नग्गर की शांत वादियों को कर्मक्षेत्र के लिए चुना। नेहरू ने कहा था-मैं पहाड़ों का दिलदादा हूं…कुल्लू-मनाली में एक खामोश हकीकत का एहसास होता है। यही कारण रहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू अपनी जीवनावस्था में दो बार मनाली आए।

पहली बार नेहरू वर्ष 1942 तो दूसरी बार 1958 में इस शांत वादी की ओर मुड़े। नेहरू का मानना था कि प्रकृति की एकांतस्थली में किसी भी योजना को फलीभूत साकार किया जा सकता है और यहां आत्मिक शांति का आभास होता है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय कला प्रेमी रोरिक ने इस स्थल को अपनी कला साधना के लिए चुना। यहां रहते हुए नेहरू ने केवल फुर्सत के लम्हे बिताए बल्कि ऐसे पुराने पत्रों को भी व्यवस्थित किया, जिसमें देश की आजादी में योगदान देने वाले महापुरुषों के विभिन्न पहलू थे। यह सभी पत्र बाद में बंच आॅफ ओल्ड लैटर के नाम से छपे। प्रसिद्ध इतिहासकार स्मिथ और पर्जिटर ने भी माना कि हमारे पुराण अमूल्य ऐतिहासिक परंपराओं के कोष हैं और जिन्हें ब्यास ऋषि ने मनाली के आसपास के ही वातावरण में सुव्यवस्थित किया था। बंच आॅफ ओल्ड लैटर भी पिछली अर्द्धशताब्दी की गाथा है, जो आने वाली पौध के सामने अतीत की घटनाओं की उचित तस्वीर पेश करने में विशेष मार्गदर्शक साबित होगी।

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