डोकलाम पर विराम
यह अच्छी बात है कि भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर चला आ रहा गतिरोध शांतिपूर्ण तरीके से दूर हो गया। सोमवार को दोनों देशों ने अपने-अपने सैनिकों को वहां से हटाने की घोषणा की, जहां वे एक-दूसरे के खिलाफ मध्य जून से जमे हुए थे। यह समाधान साफ तौर पर भारत के रुख की जीत है। भारत बराबर यही दोहराता रहा कि गतिरोध का हल राजनयिक तरीके से और बातचीत से निकाला जाए। लेकिन चीन इस पर अड़ा हुआ था कि पहले भारत अपने सैनिकों को अपनी सीमा में बुलाए, तभी कोई सार्थक बातचीत हो सकती है। भारत अपने सैनिकों को उसी सूरत में वापस बुलाने को राजी था जब चीन भी अपने सैनिकों को डोलम पठार से हटा ले। आखिरकार चीन को भारत की बात माननी पड़ी। अलबत्ता चीन ने यह जरूर कहा है कि उसके सैनिक उस इलाके में बने रहेंगे, गश्त लगाते रहेंगे, और वहां चीन की संप्रभुता के दावे को जताते रहेंगे। पर यह स्थिति तो पहले भी थी। और ताजा सहमति से उसी की बहाली हुई है। इस तरह, डोकलाम को लेकर चले आ रहे विवाद पर कोई फर्क नहीं पड़ा है, पर चीन को अपनी नई दखलंदाजी वापस लेनी पड़ी है।
डोकलाम एक विवादित क्षेत्र है; चीन और भूटान, दोनों उस पर अपना दावा जताते रहे हैं। लेकिन नई स्थिति तब खड़ी हुई जब चीन ने वहां सड़क बनानी शुरू कर दी। आखिर ऐसी जगह, जहां दोनों पक्षों का दावा हो, स्थायी निर्माण क्यों? स्वाभाविक ही यह भूटान को नागवार गुजरा। उसने भारत से कहा, क्योंकि वह राजनयिक और सुरक्षा संबंधी मामलों में भारत पर निर्भर है। फिर भारत ने वही किया जो डोकलाम में यथास्थिति को बदलने के चीन के प्रयास को रोकने के लिए किया जाना चाहिए था। भारतीय सैनिकों ने चीन की तरफ से हो रहा सड़क-निर्माण का कार्य रोक दिया और वहीं जम गए। तब से कोई सवा दो महीने के दौरान चीन के विदेश मंत्रालय और खासकर चीन के राज्य-नियंत्रित मीडिया ने भारत को डराने-धमकाने वाली बातें बार-बार कहीं। उन्नीस सौ बासठ की याद दिलाईगई। कई बार लगा कि शायद युद्ध छिड़ सकता है। दो हफ्ते पहले पैंगोंग झील के पास दोनों तरफ के सैनिक भिड़ गए और उनमें पत्थरबाजी हुई। मगर युद्धाभ्यास करने, सीमा पर अपने सैनिकों की तैनाती बढ़ाने और तमाम धमकी भरी टिप्पणियों के बावजूद चीन को डोकलाम में अपनी जिद छोड़नी पड़ी। इसके कई कारण हैं। सबसे बुनियादी वजह यह है कि एक से एक विनाशकारी हथियारों की मौजूदगी के कारण युद्ध अव्यावहारिक हो गए हैं; भले सामरिक रणनीति का खेल चलता रहता हो। दूसरे, चीन को धीरे-धीरे लगने लगा था कि दबाव बनाने की रणनीति और डराने-धमकाने की भाषा नहीं चलेगी। अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसके खिलाफ है और अमेरिका समेत तमाम देश डोकलाम गतिरोध दूर होने का इंतजार कर रहे हैं।
ब्रिक्स की शिखर बैठक की तारीख भी नजदीक आ रही थी जो बेजिंग में होनी है और जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को भी शामिल होना है। अनेक रणनीतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि डोकलाम-गतिरोध अभी महीनों खिंच सकता है। ऐसे में क्या यह सिर्फ संयोग है कि ब्रिक्स की शिखर बैठक से कुछ ही दिन पहले गतिरोध दूर हो गया! चीन को अपनी जिद से पीछे हटना पड़ा, इससे उसकी ताकत कम नहीं हो जाती, पर भारत भी दुनिया को, खासकर पड़ोसी देशों को खुद के एक क्षेत्रीय शक्ति होने का अहसास कराने में सफल रहा। अगर इस समाधान से चीन ने खुद को आहत महसूस किया होगा, तो इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि वह बाद में कहीं कोई और मोर्चा खोल सकता है। इसलिए भारत को सतर्क रहना होगा।