जानिए क्या है तीर्थ स्थान का महत्व, कैसे करें अपने इष्ट को प्रसन्न
मंदिर एक ऐसा स्थान हैं जहां पर जप साधना करने से सकारात्मक जीवन से धरती में एक विशेष दैवीय ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है। शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि शब्दधनी से किसी भी स्थान पर ऊर्जा उत्पन्न की जाती है जिसे प्राण कहा जाता है। इष्ट को साकार रुप देने के बाद ही उनके सामने किया गए पूजन से पूरा क्षेत्र दिव्य ऊर्जा से भर जाता है। इसी को मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा करना कहा जाता है और इसके बाद आम जन प्रतिमा से ऊर्जा महसूस करते हैं। इसी को मंदिर कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर में लोगों की साधना और सात्विक व्यवहार ही ऊर्जा उत्पन्न करता है।
भविष्यपुराण और ब्रह्म पर्व के अनुसार मंदिर के पास में एक जलराशि होना आवश्यक माना गया है। जप, ध्यान, यज्ञ और सात्विक व्यवहार वाले स्थान पर विशिष्ट दैवीय ऊर्जा मानव जीवन को बदलने लगती हैं। मंदिर का हमारी संस्कृति अधिक महत्व है लेकिन कई लोगों को तीर्थ-तीर्थ जाने के बाद भी भगवान का आशीर्वाद नहीं मिलता है उस स्थिति में जब मंदिर जाएं तो भगवान के सामने बैठकर ध्यान पूर्वक जाप करना चाहिए। मंदिर में रहते हुए ये ध्यान रखें कि वहां भगवान की प्रतिमा पर गलती से भी पैसे नहीं फेंके। प्रभु को सुगंध, इत्र, दीपक जैसी चीजें अर्पित करें। इष्ट की मूर्ति पर प्रसाद नहीं लगाना चाहिए। उन्हें सफेद, लाल और पीले फूल को अर्पित करें।
माना जाता है कि मंदिर जाने का सर्वश्रेष्ठ समय होता है अगर उसके अलावा जाए तो उसका कोई फल प्राप्त नहीं होता है। सूर्योदय और सूर्योस्त को हिंदू शास्त्रों में पूजा करने का सबसे श्रेष्ठ समय माना जाता है। इसके साथ रात्रि में निशीथ काल के समय में भी पूजा की जी सकती है। सुबह मंदिर में जाकर भगवान का पूजन करना ही सबसे शुभ माना गया है। इसके बाद सूर्यास्त के अगले 48 मिनट तक जिसे प्रदोष काल कहा जाता है उस समय मंदिरों में सबसे अधिक पूजा की जाती है। मंदिर में स्वच्छ होकर जाएं और वहां भी स्वच्छता का खास ध्यान रखें।