राजनीतिः प्रदूषण से मुक्ति की खातिर

जितना भी प्लास्टिक दैनिक उपभोग की वस्तुओं को बनाने या पैक करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, इस्तेमाल के बाद उसके वैज्ञानिक व संतुलित निपटान की कोई कारगर व्यवस्था विश्व-स्तर पर अभी तक नहीं बन सकी है। प्रदूषण से मुक्ति के लिए हमें अपनी आधुनिक व विलासी आदतों को अतिशीघ्र नियंत्रित करना सीखना होगा। नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।

विकेश कुमार बडोला

कुछ दिन पहले पूर्वोत्तर भारत तथा दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सहित हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश विषैली धुंध की घनी परत से ढंके हुए थे। दस-पंद्रह दिनों तक काले वायुमंडल ने लोगों के भीतर विचित्र भय पैदा कर दिया था। लेकिन अब दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश सहित धुंध से सने क्षेत्र कुछ-कुछ साफ क्या हुए कि प्रदूषण से ध्यान हट गया है। ऐसी आपात स्थिति से अल्पकालिक छुटकारा मिलने के बाद सरकार व लोगों को यह सोच कर प्रदूषण की विकराल समस्या को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि अब वे सुरक्षित हैं, बल्कि उन्हें भविष्य में प्रदूषण की ऐसी विकट स्थिति से निपटने के स्थायी प्रबंध करने की दिशा में बड़े काम करने चाहिए, उपयोगी योजनाएं बनानी चाहिए, स्थायी समाधान निकालने चाहिए।

प्राय: मार्गशीर्ष प्रारंभ होने से पूर्व दिल्ली-एनसीआर और पूर्वी उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों में ऐसा प्रदूषित मौसम पहले कभी नहीं देखा गया। कार्तिक अमावस्या के दिन पड़ने वाली दीपावली में पटाखों का धुआं कभी इतना विषैला नहीं होता था कि वातावरण को सांसों के लिए कष्टसाध्य बना दे। इसी दौरान खरीफ की फसल की कटाई-छंटाई के बाद खेतों में जो फसली अवशेष या पराली फैली रहती है, कृषक उसका निपटान हमेशा जला कर ही करते रहे हैं। रबी की फसल के लिए खेत तैयार करने को उनके पास अधिकतम पंद्रह-बीस दिनों का ही समय शेष रहता है। पुरानी फसल की पराली या अपशिष्ट को ठिकाने लगाने के बाद ही वे नई फसल बोने को खेत तैयार कर सकते हैं। ऐसे में उनके पास फसल अवशेषों को जलाने के अतिरिक्त क्या आसान उपाय है? नई फसल के लिए खेत खाली करने का यह तरीका किसानों का अपना पारंपरिक तरीका है। सरकार ने तो दशकों से इस दिशा में किसान के सहायतार्थ या उसके हित में कोई साधन विकसित नहीं किया।

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