कहानी- गलती का अहसास

उस दिन जब खाने की छुट्टी के समय राजेश चुपचाप अपना खाना खा रहा था, तभी मनोज खेल के मैदान से दौड़ता हुआ उसके पास आकर बोला- ‘हम लोग कबड्डी खेलने जा रहे हैं। तुम्हें भी खेलना हो तो चलो।’ ‘नहीं, मैं नहीं चलूंगा। अभी मुझे पढ़ना है।’ राजेश ने कहा। यह सुन कर मनोज जोर से हंसता हुआ बोला- ‘अरे, तू पिद्दी-सा क्या कबड्डी खेलेगा? कहीं जरा-सा हाथ भी लग गया किसी का, तो वहीं गिर जाएगा। तू तो बस किताबों से ही खेल!’ यह कहते हुए वह मैदान की ओर भाग गया। राजेश मन ही मन सोचा कि क्या कोई ऐसी दवा नहीं है जिसे पीते ही वह तुरंत मोटा-तगड़ा हो जाए? काश! अगर ऐसा हो पाता तो मनोज और अन्य लड़कों को ऐसा सबक सिखाता कि वे जिंदगी भर याद रखते।

पिछले महीने एक दिन पापा के साथ पहलवान अंकल उसके घर आए थे। उनका भारी-भरकम शरीर देख कर वह सोचने लगा था कि जो चीज पहलवान अंकल खाते हैं, अगर वही चीजें वह भी खाने लगे तो उनकी तरह मोटा हो जाएगा। डरते-डरते उसने अपने मन की बात पहलवान अंकल को बता दी। सुन कर वे बहुत हंसे थे। उन्होंने कहा- ‘बेटा, कमजोर वह नहीं है, जिसे लोग कमजोर समझते हैं। कमजोर तो वह है जो खुद को कमजोर समझता है। तुम किसी से कमजोर नहीं हो।’ पर वह मन ही मन सोचता रहा कि शायद पहलवान अंकल उसे बताना नहीं चाहते कि वे क्या खाते हैं।
आज फिर मनोज ने उसके दुबलेपन का मजाक उड़ाया था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे? क्या हमेशा मजाक ही उड़ता रहेगा? यही सब सोचते-सोचते उसकी आंखों में आंसू आ गए। वह सुबकने लगा।  ‘क्या हुआ राजेश? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’ कक्षा में घुसते ही दीपक ने राजेश को देख कर कहा। ‘अरे, तुम तो रो रहे हो? क्या हुआ?’ राजेश की आंसुओं से भीगी आंखें देख कर दीपक ने पूछा। राजेश ने रोते-रोते सारी बात बता दी।
तब दीपक बोला- ‘मेरे पड़ोस में रहने वाली चाची की लड़की नेहा भी बहुत दुबली थी। पिछले महीने उसकी मम्मी एक बुढ़िया के पास उसे ले गई थीं। बुढ़िया ने नेहा की पीठ पर कुछ पीले रंग की दवा लगाई थी। और कान के पास कुछ बुदबुदा कर फूंकें मारी थीं। दवा लगाते ही नेहा चिल्लाई थी। जहां दवा लगाई गई थी, वहां फफोले पड़ गए थे। अब ठीक हो गए हैं और अब वह उतनी दुबली भी नहीं रही। तुम चाहो तो उस बुढ़िया को दिखा दो।’

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