दूसरी नजर- वे गरीबों को एजेंडे पर ले आर्इं

उन्नीस नवंबर, 2017 बगैर राष्ट्रीय स्तर पर मनाए ही बीत गया। यह हमारे इतिहास-बोध का एक दुखद बिंब है। यह राज्य की कथित तटस्थता पर एक मौन टिप्पणी है। यह शर्मनाक है। यह तारीख भारत की तीसरी और छठी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सौवीं जयंती थी। उन्हें बहुत-से लोग प्यार करते थे और उनसे नफरत करने वालों की संख्या भी कम नहीं थी, पर जब तक वे जीवित थीं उन्हें कभी भी नजरअंदाज नहीं किया गया। हर प्रधानमंत्री की सफलताएं और विफलताएं होती हैं। दोनों का आकलन समय-विशेष की पृष्ठभूमि में और उस संदर्भ में होता है जिनमें वे घटित हुई रहती हैं, और उन चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में भी, जिनका सामना उस समय देश को और प्रधानमंत्री को करना पड़ा था। जब इंदिरा गांधी 1966 में प्रधानमंत्री बनीं-
’दो युद्धों (1962 और 1965) ने देश के संसाधन चूस लिये थे;
’तब अनाज की भारी कमी थी और देश पीएल 480 के तहत मिलने वाली खाद्य सहायता पर बुरी तरह निर्भर था;
’कांग्रेस पार्टी का संगठन काफी कमजोर था (और बाद के दो साल के भीतर पार्टी आठ राज्यों में चुनाव हार गई)।

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