सीमित पैमाने

उदारीकरण के दौर ने रेटिंग एजेंसियों की पूछ बढ़ा दी। सारे देश उनसे बेहतर प्रमाणपत्र पाने को लालायित रहते हैं, इस खयाल से कि रेटिंग एजेंसियों की नजरों में चढ़ना विदेशी निवेश आकर्षित करने में मददगार होगा। वरना देश के भीतर अपनी अर्थव्यवस्था पर नजर रखने और उसका आकलन करते रहने वाले सरकारी विभागों व गैर-सरकारी संस्थाओं की कोई कमी नहीं है। कुछ दिन पहले भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज का आकलन आया था। तब सरकार फूले नहीं समा रही थी, क्योंकि मूडीज ने भारत की रेटिंग बीएए-3 से बीएए-2 कर दी थी, यानी भारत का स्थान एक पायदान ऊपर कर दिया था। इससे अर्थव्यवस्था की हालत को लेकर आलोचना झेल रही सरकार को अपनी पीठ थपथपाने का मौका मिल गया। लेकिन अब मूडीज जैसी एक दूसरी जानी-मानी एजेंसी एस ऐंड पी यानी स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स ने जो कहा है उसमें नाराज होने वाली कोई बात नहीं है तो खुश होने की भी कोई बात नहीं है। एस ऐंड पी ने भारत की रेटिंग को स्थिर परिदृश्य के साथ बीबीबी ऋणात्मक पर कायम रखा है।

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