बैंकिंग सुधार की कठिन डगर
मौजूदा समय में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकारी बैंकों में आमूलचूल परिवर्तन लाने की दरकार है। समस्या की गंभीरता को देखते हुए बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए सरकार ने उन्हें 2.11 लाख करोड़ रुपए देने की योजना बनाई है। अर्थव्यवस्था में तेजी लाने, विकास दर को बढ़ाने और रोजगार सृजन में बढ़ोतरी लाने के लिए बैंकों को मजबूत करना जरूरी है। सरकार के इस कदम को जीएसटी के बाद सबसे अहम सुधार माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि इससे वित्तवर्ष 2019 में जीडीपी वृद्धि दर में बढ़ोतरी होगी और फंसे हुए कर्ज व अनुत्पादक परिसंपत्तियों की समस्या लगभग समाप्त हो जाएगी और बैंक बेसल तृतीय के विविध मानकों को आसानी से पूरा कर सकेंगे। साथ ही, आने वाले दिनों में भी बैंक सुधारात्मक कार्यों को जारी रख सकेंगे। प्रस्तावित पुनर्पूंजीकरण की व्यवस्था को तीन हिस्सों में बांटा गया है। कुल राशि में 18,000 करोड़ रुपए बजट से दिए जाएंगे; 58,000 करोड़ रुपए बाजार से इक्विटी के रूप में जुटाए जाएंगे और 1.35 लाख करोड़ रुपए सरकार द्वारा पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड के रूप में उपलब्ध कराए जाएंगे। इस प्रक्रिया को दो साल में पूरा किया जाएगा, लेकिन अधिकांश पूंजी अगली चार तिमाहियों में बैंकों को दी जाएगी। जानकारों के मुताबिक वृहद आर्थिक स्थिति पर सरकार के इस कदम का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन के अनुसार, पुनर्पूंजीकरण बॉन्ड से सरकारी खजाने पर 9,000 करोड़ रुपए ब्याज का बोझ पड़ेगा। सुब्रमण्यन के मुताबिक बॉन्ड से राजकोषीय घाटा बढ़ेगा या नहीं, यह अपनाई गई लेखा विधि पर निर्भर करेगा। अंतरराष्ट्रीय लेखा मानक के तहत इस तरह के बॉन्ड से राजकोषीय घाटा नहीं बढ़ता है, क्योंकि यह उसके दायरे में नहीं आता है, लेकिन लेखा की भारतीय प्रणाली को अपनाने से इस बॉन्ड से राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी हो सकती है। देखा जाए तो लंबी अवधि में वृहद अर्थव्यवस्था पर इसका एक ही नकारात्मक प्रभाव, सरकारी कर्ज में इजाफे के रूप में पड़ेगा, लेकिन इससे रेटिंग एजेंसियों के रुख पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।