दिल्ली विधानसभा की बवाना सीट पर हुए उपचुनाव में करारी हार के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हिल गई है। दिल्ली नगर निगम चुनावों में जीत के बाद भाजपा को यहां पर भी भारी जीत की उम्मीद थी। लेकिन उम्मीदों पर पानी फिर गया है। आम आदमी पार्टी (आप) के उम्मीदवार ने भाजपा उम्मीदवार को करीब 24 हजार वोटों से करारी शिकस्त दी है। अब बवाना विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने हार के कारणों की जांच की जिम्मेदारी भाजपा के उत्तर पश्चिम लोकसभा के सांसद उदित राज को दी है। पार्टी से जुड़े लोग अब इसे हार की लीपापोती करने के रूप में देख रहे हैं। उपचुनाव में पराजित बवाना विधानसभा उत्तर पश्चिम लोकसभा क्षेत्र के तहत आता है जिसके सांसद उदित राज हैं। पार्टी में चंद लोग हार का एक कारक उन्हें भी ठहरा रहें हैं। जबकि वास्तविकता कुछ अलग ही है। केजरीवाल को बौना साबित करने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने दिल्ली की राजनीति में जोड़ तोड़ शुरू कर दी। उसकी शुरुआत आप के बवाना से विधायक वेदप्रकाश से इस्तीफा दिलवाकर उन्हें भाजपा में शामिल कराने से शुरू हुई है। नगर निगम चुनावों से पहले वेदप्रकाश ने आप से इस्तीफा दे दिया और वे भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें भाजपा में लाने का प्रयास भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को जाता है। जिसके तहत वेदप्रकाश को यहां से चुनाव लड़वाने का भी आश्वासन दिया गया था।
बवाना सीट पर चुनाव की घोषणा होते ही, इस सीट पर उम्मीदवार की भाजपा के दिल्ली नेतृत्व ने शुरूआत कर दी। लेकिन पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व पूरी तरह से वेदप्रकाश को यहां से चुनाव लड़वाने के हक में नहीं था। यहां तक कि दिल्ली भाजपा के संगठन मंत्री सिद्धार्थन और दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी भी वेदप्रकाश को यहां से चुनाव लड़वाने के हक में नहीं थे। लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने साफ कर दिया कि पार्टी हारे या जीते लेकिन चुनाव तो वेदप्रकाश को ही लड़वाया जाएगा। दिल्ली भाजपा भी इस मामले में अपने केंद्रीय नेतृत्व के आगे मजबूर थी। पार्टी ने चुनावी तैयारियां शुरू कर दीं। यहां पर चुनाव लड़वाने की जिम्मेदारी सांसद प्रवेश वर्मा और उदित राज को दी गई है। जाट बहुल इस सीट पर भाजपा को उम्मीद थी कि उसका फायदा उन्हें मिलेगा। दिल्ली में एक समय ऐसा भी था कि बाहरी दिल्ली में विधानसभा की ज्यादातर सीटों पर जाट विधायकों का कब्जा था। लेकिन मौजूदा में बाहरी दिल्ली का जाट भाजपा से लगातार दूरियां बना रहा है। जाटों में सांसद प्रवेश वर्मा भी अपना राजनीतिक कद उस तरह से नहीं बना पाए हैं, जिस तरह से उनके पिता साहिब सिंह वर्मा का था। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उसे समझ गया था, उसे देखते हुए यहां पर कई जाट नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों को प्रचार में उतारा गया। लेकिन उसका भी पार्टी को कोई फायदा नहीं मिला।बवाना की सीट आरक्षित सीट है। यहां पर अनुसूचित जाति के भी काफी मतदाता हैं। बवाना में उम्मीदवार वेद प्रकाश के बारे में क्षेत्रीय विकास के कामों की उपेक्षा करने की शिकायत थी। कार्यकर्ताओं में यह आम चर्चा भी रही कि दिल्ली के दूसरे लोकसभा क्षेत्र के सांसद को चुनावी प्रभारी बनाए जाने से उदित राज नाराज थे। इस वजह से उन्होंने चुनाव में सक्रिय भूमिका नहीं निभाई। अब भाजपा ने बवाना विधानसभा उपचुनाव में पार्टी की करारी हार के कारणों की जांच की जिम्मेदारी उस विधानसभा से परोक्ष जुड़े उस सांसद को दे दी, जिनकी यहां पर प्रचार में चली ही नहीं है। बेहतर होता कि पार्टी हार की समीक्षा का काम उस नेता को देते, जो किसी भी तरह से यहां से चुनाव में जुड़ा ही नहीं होता। वह सभी पक्षों से बात करके पार्टी को बेहतर रिर्पोट देता, जिससे आने वाले समय में पार्टी कुछ बेहतर सबक लेती।