मनोज तिवारी से लेकर ‘आप’ तक बदला भाजपा का समीकरण

प्रदेश अध्यक्ष बनने के साल बीतते ही पार्टी का एक वर्ग प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को हाशिए पर पहुंचाने में लग गया है। उसके इस अभियान में हाईकमान के भी कुछ नेताओं का समर्थन बताया जा रहा है। पार्टी के अनेक पदाधिकारी तिवारी के बजाए दिल्ली में रहने वाले भाजपा के दूसरे राष्ट्रीय नेताओं का दरबार लगाने लगे हैं। दिल्ली भाजपा को मजबूत करने के लिए बनी आठ वरिष्ठ नेताओं की समिति में भी उन्हें शामिल नहीं किया गया है। इस समिति की पहली बैठक 28 नवंबर को हुई और तय हुआ कि इस समिति की बैठक हर पंद्रह दिन में होगी। भाजपा का एक तबका मानता है कि दिल्ली भाजपा का मौजूदा नेतृत्व ‘आप’ से मुकाबला करके पिछले 19 साल से दिल्ली की स्थानीय सत्ता से बेदखल पार्टी को दोबारा सत्ता में लाने में सक्षम नहीं है। यह भी चर्चा की गई कि केंद्र और नगर निगम की भाजपा सरकार का लाभ दिल्ली की जनता तक पहुंचाने के लिए क्या-क्या तरीके अपनाए जा सकते हैं।
जिन हालात में मनोज तिवारी अध्यक्ष बने और नगर निगम चुनाव हुए उसमें भाजपा के तीसरी बार चुनाव जीतने की कोई उम्मीद ही नहीं थी।

इस चुनाव में भी भाजपा के वोट के औसत में बढ़ोतरी नहीं हुई, लेकिन पहले की तरह गैर भाजपा मतों का विभाजन होने से उसे जीत मिली। भाजपा को करीब 36 फीसद, आप को 26 फीसद और कांग्रेस को 22 फीसद वोट मिले। यानी इस चुनाव में भी निर्दलीय और अन्य को 16 फीसद वोट मिले। भाजपा का वोट बैंक बढ़ाने के लिए बिहार मूल के दिल्ली उत्तर पूर्व के सांसद मनोज तिवारी को दिल्ली भाजपा का अध्यक्ष बनाया। चुनावी माहौल बनाने में इसका उन्हें लाभ मिला। भाजपा के 32 पूर्वांचल मूल के उम्मीदवारों में 20 चुनाव जीतने में सफल रहे। एक खास वर्ग और कुछ जातियों की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा में यह परंपरा सी बन गई थी कि पंजाबी और बनिया के अलावा कोई पार्टी का चेहरा नहीं बन सकता है। अब पंजाबी बड़ा चेहरा भी भाजपा से गायब हो गया है। यह समझना जरूरी है कि दिल्ली बदल चुकी है।

बिना नए वर्ग को जोड़े पार्टी सरकार में नहीं आ सकती है। विधानसभा की 70 में से 50 सीटें ऐसी हैं जहां पूर्वांचल के प्रवासी दस फीसद से लेकर 60 फीसद तक हैं। मनोज तिवारी 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल होकर 2014 में दिल्ली उत्तर पूर्व के सांसद बने तो यह माना गया कि पार्टी की प्राथमिकता बदल रही है। उसे पूर्वांचल के लोगों को जोड़ने की चिंता है। इसलिए मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष से हटाना या हाशिए पर डालने से तो भाजपा की रही सही सत्ता पाने की उम्मीद ही खत्म हो जाएगी। लेकिन यह संभव है कि उनको केंद्र सरकार में मंत्री या कोई और बड़ी जिम्मेदारी दी जाए या पार्टी में काम का नए सिरे से बंटवारा हो।

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