संजीवनी बूटी के लिए हनुमान जी ने उखाड़ लिया था जो पर्वत, उसके मिलते हैं आज भी निशान
श्रीलंका में रामायण के तथ्यों को इकठ्ठा करने के लिए एक कमेटी बनाई गई है जिसके द्वारा हुए अनुसंधानों के अनुसार श्रीलंका की उत्तर दिशा में ऐसे निशान मिले हैं जिन्हें हनुमान के प्रवेश के निशान माना जाता है। रिसर्च कमेटी के अनुसार जहां भगवान राम और रावण का युद्ध हुआ था, उस स्थान पर भी रिसर्च की गई है। आज उस युद्ध स्थान को युद्धघगवाना के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम ने रावण का इसी स्थान पर वध किया था। ऐसा माना जाता है कि रावण माता सीता का हरण करके जब लंका लाया था तब माता को अशोक वाटिका में रखा था। इस स्थान को सेता एलीया के नाम से जाना जाता है। ये श्रीलंका के नूवरा एलिया के पास है।
इसी तरह रामायण की मान्यता अनुसार माना जाता है कि लक्ष्मण के प्राण वापस लाने के लिए हनुमान हिमालय से संजीवनी पर्वत को ही उठा लाए थे। इसके बाद वैद्य ने संजीवनी निकालकर लक्ष्मण को दी थी। माना जाता है कि संजीवनी पर्वत आज भी श्री लंका में मौजूद है। माना जाता है कि इस विशाल पर्वत के हनुमान ने टुकड़े करके इस क्षेत्र में डाल दिया था। माना जाता है कि हनुमान संजीवनी पर्वत उठाकर श्रीलंका लाए तो उसका एक टुकड़ा रीतिगाला में गिरा था। रीतिगाला की खास बात ये है कि यहां जो भी पौधे उगते हैं वो आस-पास के पेड़-पौधों से बिल्कुल भी नहीं मिलते हैं। श्रीलंका के शहर नुवारा एलिया से 10 कि.मी दूर हाकागाला गार्डन में संजीवनी पर्वत का एक बड़ा हिस्सा गिरा था। इस जगह के पेड़-पौधे भी आस-पास से बिल्कुल अलग हैं। इस पर्वत को रुमास्सला पर्वत के नाम से जाना जाता है। श्रीलंका की सुंदर और रमणीय बीच इसी पर्वत के पास है।
श्रीलंका के दक्षिण समुद्री किनारे पर ऐसी जगह हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वो हनुमान के लाए पहाड़ के हिस्से हैं। माना जाता है कि जहां इस पहाड़ के हिस्से गिरे उस जगह का वातावरण बदल गया और वो आस-पास की जगहों से बिल्कुल अलग दिखते हैं। रामायण के अनुसार मान्यता है कि संजीवनी बूटी द्वारा भगवान राम के भाई लक्ष्मण की जान बचाई थी। इसके बाद हनुमान जी को पर्वत को वापस हिमालय ले जाने के लिए कहा गया था। उसी दौरान रावण और भगवान राम में युद्ध हो रहा था, इन्हीं कारणों से हनुमान संजीवनी पर्वत के हिस्से को वापस हिमालय नहीं रखकर आ सके थे। इसके साथ माना जाता है कि कर्नाटक के दक्षिण-कन्नड़ के पश्चिमी घाट पर संजीवनी पर्वत का ये हिस्सा अभी भी मौजूद है।