अयोध्या : मुस्लिम बना पार्षद तो बधाई देने पहुंचे हिंदू, घर के पास ही मन रहा था बीजेपी का भी जश्न

बाबरी मस्जिद विध्वंस के 25 साल बाद भी अयोध्या मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। यहां राम मंदिर बनाने का मसला सुप्रीम कोर्ट में कई वर्षों से चल रहा है। शीर्ष अदालत में 5 दिसंबर से सुनवाई होने वाली है। आयोध्या में विध्वंस के बाद ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राष्ट्रीय राजनीति की फलक पर अचानक से एक मजबूत ताकत बनकर उभरी। घटना के छह साल बाद अन्य दलों के साथ मिलकर केंद्र में गठबंधन की सरकार बनाई और 22 साल बाद अब पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में है। आयोध्या में सड़क और परिवहन की व्यवस्था भी बदतर स्थिति में है। हाल में संपन्न निकाय चुनाव के बाद आयोध्या के हिंदू और मुस्लिम समुदाय छह दिसंबर की घटना को छोड़कर भविष्य की बारे में सोचने लगे हैं। यही वजह है कि एक मुस्लिम के पार्षद चुने जाने के बाद बाधाई देने वाले हिंदुओं का तांता लगा रहा। वहीं, तकरीबन दो सौ मीटर की दूरी पर भाजपा जीत का जश्न मना रही थी।

बदले माहौल का ही असर है कि आयोध्या मामले के पक्षकार हाजी महबूब के भतीजे असद के निकाय चुनाव जीतने पर तेरही बाजार के लोग लगातार उन्हें बधाई देने आ रहे हैं। महबूब एक ही बात कहते हैं, यह आपके सहयोग के बिना संभव नहीं था, मुस्लिम अकेले ऐसा नहीं कर पाते। असद समाजवादी पार्टी की ओर से मैदान में उतरे थे। हालांकि, आयोध्या नगर निगम के मेयर का पद भाजपा के खाते में गया है। बाबरी मस्जिद विध्वंस के 25 साल बाद अयोध्या के अधिसंख्य लोग अब आगे बढ़ना चाहते हैं। हिंदू संगठन भले ही अयोध्या को हिंदुओं के लिए वेटिकन बनाना चाहते हों, लेकिन स्थानीय लोग अतीत और मौजूदा स्थिति से ऊब गए हैं। मालूम हो कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति लगातार मजबूत की है। इस साल के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने रिकॉर्ड जीत हासिल की और योगी आदित्यनाथ देश के सबसे बड़े राज्य की सत्ता में हैं। इसके बावजूद आयोध्या की हालत में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं आया है। शहर की हालत ऐसी है कि यहां एक बेहतर होटल भी नहीं है।खुले नालों से आने वाली दुर्गंध ने जीना मुहाल कर रखा है। एक भी अच्छा होटल न होने के कारण बाहर से आए लोगों को फैजाबाद में रुकना पड़ता है। आवागमन की बेहतर सुविधा न होने के कारण उन्हें विक्रम से आना-जाना पड़ता है। मूलभूत सुविधाओं का इस हद तक अभाव है कि अयोध्या में एक भी ऐसा अस्पताल नहीं है, जिसपर लोग विश्वास कर सकें।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार आयोध्या की आबादी 60 हजार है। लेकिन, दिसंबर 1992 में बाहर से आए कार सेवकों के आने से यह संख्या तकरीबन दो लाख तक पहुंच गई थी। बेहतर प्रबंधन के लिए योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद मई में फैजाबाद को शामिल कर आयोध्या नगर निगम की घोषणा की थी। मालूम हो कि जनवरी 1978 में फैजाबाद नगर निगम से आयोध्या को अलग किया गया था। आयोध्या मामले में मुख्य वादी दिवंगत हाशिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी कहते हैं कि यह पवित्र शहर है। हर दिन यहां सैंकड़ों लोग आते हैं, लेकिन यहां होटल नहीं हैं। लोगों को मजबूरी में फैजाबाद में ठहरना पड़ता है। इसके अलावा आयोध्या में हर जगह गंदगी फैली रहती है। एक पवित्र शहर को क्या ऐसा ही रहना चाहिए? सुदर्शन भी इकबाल की बात से सहमति जताते हैं। हालांकि, आयोध्या नगर निगम की वेबसाइट पर स्ट्रीट लाइट, पेयजल आपूर्ति और सड़कों को दुरुस्त करने की बात कही गई है। यह आयोध्यावासियों को कुछ उम्मीद बंधाती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *