बिहार: भागलपुर समेत पूरे राज्य में बालू-गिट्टी की किल्लत, दिहाड़ी मजदूरों के सामने रोजी रोटी का संकट

भागलपुर समेत पूरे सूबे में बालू-गिट्टी के लिए हाहाकार मचा है। निर्माण के काम लगभग बंद हो गए है। हजारों दिहाड़ी मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहराया है। बिहार सरकार ने पहली दिसंबर से सरकारी और सस्ती कीमत पर बालू – गिट्टी आपूर्ति का दावा किया था। जो बेमतलब साबित हो रहा है। खान व भूतत्व महकमा ने अखबारों में इश्तहार देकर बालू-गिट्टी की आपूर्ति के लिए तीन तरह के रास्ते सुझाए थे। पहला वेबसाईट के जरिए आर्डर करके , दूसरा कंट्रोल रूम के बेस टेलीफोन नंबर पर फोन करके और तीसरा खुदरा लाइसेंस धारक से संपर्क करके। जिनके निर्माण बालू-गिट्टी के बगैर ठप्प पड़े है उनमें से भागलपुर के गोपाल शर्मा , उज्ज्वल वर्मा और जीएल जोशी से बातचीत में पता चला कि वेबसाइट काम तो कर रहा है। आर्डर कर देने पर आर्डर नंबर भी जेनरेट हो रहा है। मगर इसकी आपूर्ति कब होगी ? इसका कोई समय तय नहीं है। मिसाल के तौर पर आर्डर संख्या 00201702125911287 है। दो रोज गुजर जाने पर भी आपूर्ति का ठिकाना नहीं है। जबकि दावा पहली दिसंबर से सब कुछ ठीक हो जाने का किया गया था। दूसरे सिस्टम का फोन ही नहीं लगता है। तीसरा सिस्टम खुदरा लाइसेंस देने की प्रक्रिया पर ही आवेदकों ने सवाल खड़े कर रहे है। सीधे सीधे घूस लेकर लाइसेंस जारी करने का आरोप लगाया है।

भागलपुर के डीडीसी आंनद शर्मा को इस बाबत ज्ञापन सौंपा है। जिस पर सुनील कुमार आजाद, रवि कुमार , राजेश कुमार, उपेंद्र दास , राकेश कुमार सिंह बगैरह का दस्तखत है। नूरपुर के मुखिया प्रतिनिधि सुमन कुमार सुधांशु ने अनियमितता के खिलाफ आयुक्त से मिल जांच कराने का आग्रह किया है। भागलपुर ज़िले में 171 दरखास्त में केवल 61 मंजूर कर लाइसेंस देने पर यह विवाद पैदा हुआ है। यह हाल पूरे सूबे का है। जिन्हें लाइसेंस दिए गए है उन्हें बालू-गिट्टी ही नहीं मिली है। न ही उनका कोई ठिकाना बन पाया है।शुक्रवार से घाटों से बालू का उठाव मजिस्ट्रेट की निगरानी में होना था। इसके लिए मजिस्ट्रेट तैनात किए जाने की बात प्रशासन स्तर पर कही गई थी। मगर हकीकत से इसका कोई वास्ता नजर नहीं आया। नतीजतन बालू-गिट्टी की घोर किल्लत और दिक्कत हो गई है। और यह हालत बीते एक महीने से है। बता दें बिहार सरकार के खान व भूतत्व महकमा के नए कानून को बीते 28 नवंबर को पटना हाईकोर्ट ने दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए रोक लगा दी थी। तो खुदरा लाइसेंस देने में सरकार ने 1972 के बने नियम को आधार बनाया। हालांकि राज्य सरकार हाईकोर्ट की रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है।
मगर सूबे में ठप्प हुए निर्माण कामों और दिहाड़ी मजदूरों को इन सब पचड़ों से कोई लेना देना नहीं है। इनके सामने तो दो जून की रोटी की समस्या पैदा हो गई है। राजमिस्त्री का काम करने वाले सुखाडी राम , चुलाई राम , भैरो पंडित , रामधनी मंडल , सुरेंद्र पासवान सरीखे बताते है बीते 15 रोज से मजदूरी बंद है। खाने के लाले पड़े है। यह मुद्दा बिहार विधान सभा के शीतकालीन सत्र में भी उठ चुका है। विरोधी क्या सत्ता पक्ष के सदस्यों ने ही सरकार को सदन में घेरा। बल्कि सदस्यों ने यहां तक कहां कि दारू और बालू के अंतर को सरकार समझने की कोशिश करे। यह बात मीडिया में भी आई। मगर सरकार अपनी जिद पर अड़ी है। खान मंत्री विनोद सिंह ने सदन में भी कहा था कि पहली दिसंबर के बाद बालू का संकट नहीं रहेगा। पर यह अबतक हकीकत से परे है।

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