निकाय चुनाव नतीजों से प्रदर्शित हुई मुसलिमों की नई सोच

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 39 फीसद मुसलिम आबादी वाले जनपद सहारनपुर में नगर निकाय चुनावों से मुसलिमों की बदली रणनीति दिखी। उन्होंने इस बार भाजपा को हराने के लिए रणनीतिक मतदान नहीं किया। सहारनपुर नगर निगम के चुनाव में एक मुसलिम उम्मीदवार के चुनाव प्रबंधकों की ओर से इसकी भरपूर कोशिश की गई, लेकिन सहारनपुर के प्रबुद्ध व परिपक्व मतदाता किसी के बहकावे में नहीं आए। इससे उनकी नई और सकारात्मक सोच सामने आई।

नई मतदान रणनीति से यह भी संकेत मिले हैं कि मुसलिम भाजपा के खौफ से बाहर आया है। समाज शास्त्री इसके सकारात्मक नतीजे सामने आने की भविष्यवाणी कर रहे हैं। निकाय चुनावों में सहारनपुर के मुसलिमों ने अपनी कई वर्षों से चली आ रही रणनीतिक मतदान की रणनीति को छोड़कर साहस का परिचय दिया है। इसका असर लोकसभा चुनावों पर भी दिख सकता है। मुसलिमों की नई सोच से मुख्य धारा के प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस में भी जान पड़ी है। इससे कुनबापरस्ती व जातीयता की पहचान रखने वाली सपा की साइकिल पंक्चर हुई। बसपा के अपने पुराने गढ़ में मायावती का हाथी भी खूब दौड़ा। सहारनपुर जिले का मुसलमान भावुक है। वह पिछले कई सालों से नेतृत्व विहीनता के दौर से गुजर रहा है। शायद इसलिए भाजपा से डरकर रणनीतिक मतदान करता रहा है। कहीं न कहीं ऐसा करके वह भाजपा को ही मजबूत करता रहा है। सहारनपुर जिले के कस्बा देवबंद में विश्वविख्यात इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम है जिसकी सोच प्रखर राष्ट्रवादिता की है।

देवबंद से निकले मुसलिम उलेमा ने अलगाववादी व सांप्रदायिक सोच को कभी हवा नहीं दी है। राजनीतिक जानकारों ने जब यह महसूस किया कि मुसलिम भाजपा को हराने की गरज से अबकी रणनीतिक मतदान नहीं करने जा रहा है तो उसका असर भाजपा नेतृत्व और रणनीति पर भी हुआ। इसको ऐसा समझा जा सकता है कि 26 नवंबर को जब प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गांधी पार्क में भाजपा के महापौर उम्मीदवार संजीव वालिया के पक्ष में बोलने आए तो उनके साथ मंच पर बैठे चुनाव प्रभारी विजयपाल सिंह तोमर ने उनसे कहा कि यहां उनका भाषण विकास व लोगों की बुनियादी सुविधाओं और भ्रष्टाचार आदि मुद्दों पर रहे तो यह भाजपा के पक्ष में होगा।

योगी ने आखिर ऐसा ही किया। उन्होंने धुव्रीकरण की बातों से परहेज किया। इसका भाजपा को लाभ भी मिला। जो मुसलिम किसी एक पक्ष में लामबंद हो सकता था, वह नहीं हुआ और कांग्रेस उपाध्यक्ष इमरान मसूद के असर के कारण कांग्रेस उम्मीदवार शशि वालिया जहां 55-60 हजार मुसलिम मत लेने में सफल हुए, वहीं उनके पक्ष में 10-12 हजार हिंदू मतदाताओं ने भी मतदान किया। भाजपा उम्मीदवार संजीव वालिया को 1,21,201 मत मिले। बसपा के फजलुर्रहमान कुरैशी को उनसे दो हजार कम मत मिले। कांग्रेस के शशि वालिया को 69,270 मत मिले।

सपा उम्मीदवार चौ. साजिद को करीब 10,701 वोट मिले। देवबंद पालिका के चुनाव में विजयी बसपा उम्मीदवार जियाउद्दीन अंसारी को तीन से चार हजार हिंदू मत मिले। विधानसभा चुनावों में भाजपा के विजयी उम्मीदवार ब्रिजेश रावत को 17 हजार से ज्यादा मत मिले थे। जबकि इस चुनाव में भाजपा उम्मीदवार डा. महेंद्र सैनी को 12 हजार से कुछ ज्यादा वोट ही मिले। गंगोह, सरसावा व नकुड नगरपालिका के चुनाव में भी अलग-अलग नतीजे निकले। गंगोह में कांग्रेस, सरसावा में भाजपा व नकुड में बसपा जीती। विधानसभा चुनावों में इन सभी इलाकों पर भाजपा काबिज हुई थी। मतदाताओं का बंटा रुझान नगर पंचायत के नतीजों में भी दिखा। चिलकाना, सुल्तानपुर व नानौता में बसपा, रामपुर मनिहारान व अंबेहटापीर में कांग्रेस और तीतरों में सपा व बेहट में निर्दलीय की जीत हुई।

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