जहां जहरीला आकाश है
अश्विनी शर्मा
जीवित रहने के लिए सांस लेना जरूरी है, लेकिन आजकल लोगों के लिए सांस लेना ही मुश्किल हो गया है। सबसे बुरी हालत राजधानी दिल्ली की है, क्योंकि दिल्ली के लोगों की उम्र प्रदूषण के कारण छह वर्ष तक कम हो रही है। इसलिए दिल्ली की हवा को हत्यारी हवा भी कह सकते हैं। कुछ ऐसे ही हालात देश के दूसरे हिस्सों के भी हैं जहां लोगों की उम्र वायु प्रदूषण की वजह से 3.5 से 6 वर्ष तक कम हो रही है। भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है और वायु प्रदूषण सेहत के लिए सबसे बड़ा खतरा है। लेकिन सवाल है, हम इस बेहद खतरनाक स्थिति को लेकर कितने सचेत हैं? शिकागो विश्वविद्यालय (अमेरिका) के ‘द एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट’ द्वारा वायु गुणवत्ता सूचकांक के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार वायु प्रदूषण घटाने पर कार्य करे तो लोगों का जीवनकाल औसतन चार साल बढ़ सकता है।
राष्ट्रीय मानकों का पालन करने पर देश के लोग औसतन एक साल ज्यादा जीवित रह सकते हैं। राजधानी दिल्ली द्वारा अगर डब्ल्यूएचओ के मानकों का पालन किया जाए तो दिल्ली के लोग नौ साल ज्यादा जीवित रह सकते हैं, तथा दिल्ली में वायु प्रदूषण से जुड़े राष्ट्रीय मानकों का पालन किया जाए तो यहां के लोगों की उम्र छह वर्ष तक बढ़ सकती है। इस रिपोर्ट में भारत के पचास सबसे प्रदूषित शहरों के आंकड़े दिए गए हैं। इनमें दिल्ली के अतिरिक्तआगरा, बरेली, लखनऊ, कानपुर, पटना तथा देश के कई अन्य बड़े शहर शामिल हैं। राष्ट्रीय मानकों का पालन करने पर इन शहरों में रहने वाले लोगों की उम्र साढ़े तीन साल से छह साल तक बढ़ सकती है। वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स) की मदद से यह अनुमान किया जाता है कि वायु प्रदूषण कम हो जाए तो मौजूदा औसत के मुकाबले लोगों की उम्र कितना बढ़ सकती है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार प्रदूषण की मात्रा बताने वाले पीएम 2.5 के स्तर को 70 से 20 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर तक कम कर दिया जाय तो वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में लगभग पंद्रह फीसद तक की कमी आ सकती है। राष्ट्रीय मानकों के अनुसार हमारे देश में पीएम 2.5 का स्तर 40 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर होना चाहिए और पीएम 10 के लिए यह स्तर 60 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर होना चाहिए, लेकिन भारत में पीएम 2.5 के मानक डब्ल्यूएचओ के मानकों से चार गुना ज्यादा हैं। जबकि पीएम 10 के मानक तीन गुना ज्यादा हैं। हवा में मौजूद ये पीएम कण सांस द्वारा फेफड़े में पहुंच जाते हैं और अपने साथ जहरीले रसायन को शरीर में पहुंचा देते हैं। इससे फेफड़े और हृदय को क्षति पहुंचती है।
सर्दियों के मौसम में तापमान में कमी आने के साथ ही इन दोनों कणों का स्तर वायुमंडल में बढ़ता जाता है। यानी नवंबर से फरवरी तक हालात बहुत गंभीर और खतरनाक हो जाते हैं। एक अमेरिकन संस्थान की ‘ग्लोबल एक्सपोजर टु एयर पोल्यूशन ऐंड इट्स डिजीज बर्डन’ नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की बानवे फीसद आबादी उन इलाकों में रहती है, जहां की हवा स्वच्छ नहीं है। भारत प्रदूषण का सबसे बड़ा शिकार बनता जा रहा है।
‘आॅर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कॉरपोरेशन ऐंड डेवलपमेंट’ (ओईसीडी) के अनुसार वर्ष 2060 तक वायु प्रदूषण से दुनिया को 135 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा और यह राशि हमारी मौजूदा जीडीपी से सिर्फ 10 लाख करोड़ रुपए कम है। यह नुकसान बीमारी की वजह से होने वाली छुट्टियों, इलाज पर होने वाले खर्च, और खेती में कम उत्पादन के कारण होगा तथा इससे चीन, रूस व भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। प्रदूषण श्वसन संबंधी परेशानियां देने के साथ-साथ लोगों के हृदय को भी लगातार कमजोर बना रहा है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के लोगों में दिल का दौरा पड़ने का खतरा पिछले बीस वर्षों में तीस फीसद तक बढ़ गया है। इसके लिए वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है।
एडिनबरा विश्वविद्यालय और नीदरलैंड के भी कुछ शोधकर्ताओं ने बताया है कि वाहनों से निकलने वाले धुएं के नैनो पार्टिकल्स रक्त प्रवाह में शामिल होकर दिल तक पहुंच सकते हैं। वाहनों के धुएं से निकलने वाले कण बहुत बारीक होते हैं, इतने बारीक होते हैं कि फेफड़े के फिल्टर सिस्टम को भी पार कर जाते हैं। डॉक्टरों के मुताबिक प्रदूषण के ये कण दिल में रक्तपंप करने वाली धमनियों में धीरे-धीरे जमा होने लगते हैं और धमनियों में इनकी एक परत जमा होने लगती है, जिससे धमनियां सिकुड़ने लगती हैं और हृदयाघात का खतरा बढ़ जाता है। कुछ प्रदूषक चुंबकीय कण दिमाग तक भी पहुंच जाते हैं और दिमागी बीमारियों का कारण बनते हैं।
इस पारिस्थितिक त्रासदी से राहत पाने के लिए क्या किया जा सकता है। इसके लिए नीदरलैंड का एक उदाहरण लेते हैं। वहां के रॉटरडैम शहर को उसके ऐतिहासिक स्थापत्य के लिए जाना जाता है, लेकिन किसी जमाने में रॉटरडैम दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक था। डच डिजाइनर और इनोवेटर डार्न रोजगार्ड ने काले धुएं से मुक्ति पाने के लिए जो डिजाइन तैयार किया है वह भारत के शहरों को शुद्ध वातावरण दे सकता है। दुनिया का पहला धूम्र-रहित टॉवर नीदरलैंड ने वर्ष 2015 में अपने रोटरडैम शहर में खड़ा किया था। यह ओजोन फ्री टेक्नोलॉजी पर आधारित है तथा यह टॉवर प्रतिघंटे तीस हजार क्यूबिक मीटर प्रदूषित हवा को साफ कर सकता है। सात मीटर ऊंचे इस टॉवर को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह गंदी हवा को किसी वैक्यूम क्लीनर की तरह अपने अंदर खींच सके।
यह टॉवर गंदी हवा को फिल्टर करता है और धूम्र-रहित हवा बाहर निकालता है। नीदरलैंड में हुए ‘आउटडोर टेस्ट’ के दौरान यह पाया गया है कि यह टॉवर साठ फीसद प्रदूषित हवा को शुद्ध कर सकता है। यह पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे खतरनाक कणों को पचहत्तर फीसद तक अपने अंदर अवशोषित कर लेता है, इसके बाद शुद्ध हवा टावर के चारों तरफ फैल जाती है। इस तकनीक की मदद से भारत के कई शहरों के प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है। रोजगार्ड खुद इसके लिए अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं, लेकिन इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को आगे आने की जरूरत होगी। इस परियोजना को भारत में लगाने से यहां प्रदूषण से राहत मिल सकती है।
इस प्रदूषण के आपातकाल में आम लोग किस प्रकार सुरक्षित रह सकते हैं इसके लिए कुछ कारगर उपाय ये हो सकते हैं। एक, पांच रुपए वाला या डिस्पोजल मास्क कभी नहीं खरीदना चाहिए। यह प्रदूषित कणों से नहीं बचा सकता। ऐसे मास्क का उपयोग करना चाहिए जिसमें कार्बन फिल्टर लेयर हो। दो, संभव हो तो घर पर एयर प्यूरीफायर जरूर लगवाएं। यह वैक्यूम क्लीनर की तरह कार्य करता है और हवा में मौजूद खतरनाक कणों को फिल्टर कर देता है। तीन, दिन के मुकाबले रात में प्रदूषण का खतरा ज्यादा होता है। तापमान कम हो जाने से हवा में मौजूद प्रदूषक की मारक क्षमता अधिक हो जाती है, इसलिए रात में बाहर जाने से सावधानी बरतनी चाहिए। चार, घर के अंदर लगाए जा सकने वाले कुछ पौधे जहरीली हवा को साफ करने में मददगार साबित हो सकते हैं। जैसे स्नेक प्लांट, पीस लिली, स्पाइडर प्लांट, बीपिंग फिग जैसे पौधे घर के अंदर की प्रदूषित हवा को पचास फीसद तक कम कर सकते हैं।