सैकड़ों स्टेशनों का यही है हाल: प्लैटफॉर्म पर विचरते हैं पशु, यात्रियों का हाल भी जानवरों जैसा
झारखंड-बिहार को जोड़ने वाला जसीडीह रेलवे स्टेशन बदइंतजामी का शिकार है। यात्रियों के लिए सुविधा के नाम पर यहां जो कुछ है वह न होने के बराबर है। नशाखोरी, ट्रेनों में लूट जैसी वारदातें यहां अक्सर होती रहती हैं। लेकिन सरकारी रेल पुलिस (जीआरपी) और रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) को इससे कोई लेना देना नहीं है। हजारों यात्री यहां प्रतिदिन ट्रेनों से आते-जाते हैं। कहा जा सकता है कि दुमका, वासुकीनाथ, देवघर, बांका, भागलपुर और कई दूसरे स्थानों पर जाने के लिए जसीडीह लिंक रेलवे स्टेशन है। जसीडीह रेलवे के आसनसोल डिवीजन का हिस्सा है।

इन आवारा जानवरों को स्टेशन परिसर या प्लेटफार्म तक जाने से न कोई रोकता है और न कोई बाधानुमा बाड़ बनी है। ऐसे में स्टेशन गंदगी और इनकी मस्ती का ऐशगाह बना हुआ है। गांजा, भांग और शराब जैसे नशीले पदार्थ सेवन करने वाले लोगों का अड्डा भी यही है। नशा करने के बाद मुसाफिरों को लूटने की करतूतें भी होती रहती हैं।

यदि आप कुछ देर के लिए यहां गए तो प्लेटफार्म पर सब कुछ ठीक-ठाक लगेगा। लेकिन असलियत जानने के लिए थोड़ा वक्त गुजारना जरूरी है। इसके बाद सब कुछ दिख जाएगा। पार्किंग वालों की दादागिरी तो अलग ही है। पार्किंग का कहीं रेट चार्ट नहीं लगाया गया है। ‘जैसी गाड़ी वैसी वसूली’ ही यहां चलती है। साइकिल रिक्शेवालों का जमघट तो हर वक्त लगा रहता है। आप हॉर्न बजाते रहिए, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। यह तो गनीमत रही कि रेलवे ने ऑटो रिक्शा का कुछ दूरी पर अलग स्टैंड बना दिया, नहीं तो पैदल चलना मुश्किल ही था।

इस सन्दर्भ में जानकारी देने वाला रेलवे का कोई अधिकारी तक मौजूद नहीं था। मुसाफिर लंबी कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करने को मजबूर थे। उधर हावड़ा-श्रीगंगानगर तूफान एक्सप्रेस, हावड़ा-देहरादून उपासना एक्सप्रेस, जसीडीह-आसनसोल ईएमयू ट्रेन के आने-जाने का वक्त हो चुका था। लेकिन रेलवे बाबू को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
मालूम हो कि यह खस्ता हाल वहां के रेलवे स्टेशन का है जहां विकास के बड़े-बड़े वायदे धरातल पर उतार देने की बात कही जाती रही है। गोड्डा लोकसभा क्षेत्र खासकर देवघर का विकास पहले के मुकाबले हुआ भी है। इसमें शक की गुंजाइश भी नहीं है। मगर कई क्षेत्रों में सब कुछ होते हुए भी बदइंतजामी विकास को बदनाम कर रही है। इसी में से एक रेलवे है।


इस संवाददाता ने 29 नवंबर की शाम देखा कि स्टेशन पर टिकट और प्लेटफार्म टिकट लेने के लिए लंबी कतार लगी है। वह भी केवल दो ही काउंटर पर। ध्यान रहे कि यात्रियों की सुविधा के मद्देनजर टिकट काटने के लिए यहां पर 12 काउंटर बनाए गए हैं। मगर चालू एक समय में दो ही थे और बाकी की खिड़कियां बंद थी। बाबू लोग आराम फरमा रहे थे। पूछने पर किसी ने कुछ बताने की भी जहमत नहीं उठाई। ऐसा लगा बेचारे टिकट काटते हुए काफी थक गए थे। कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां अक्सर यही हाल रहता है।
इतना ही नहीं प्लेटफार्म संख्या एक हो या दो आवारा जानवरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। गंदगी फैलाते और आपस में लड़ते कुत्ते मुसाफिरों के लिए खौफ का सबब बने हुए हैं। परेशान यात्री इनसे बचने के लिए इधर से उधर प्लेटफार्म नापते रहते हैं। बकरी और तो और सांड तक का स्टेशन परिसर चारागाह बना हुआ है। यह बताना जरूरी है कि हावड़ा या पटना की तरफ से बाबा वैद्यनाथ का दर्शन करने ट्रेन से आने वालों को जसीडीह स्टेशन पर ही उतरना पड़ता है।