हैसियत बढ़ाने की होड़ में आ सकता है नए करों का प्रस्ताव

दिल्ली नगर निगम में निगम पार्षदों के बाद मेयर से दो-दो हाथ करने को आतुर निगम आयुक्त ने पैसे का रोना रोकर कई मदों में नए कर लाने की कवायद शुरू कर दी है। मेयर को बिना बताए निगम के अधिकारियों का स्थानांतरण करने, पार्षदों के विकास फंड पर अरुचि दिखाने और आर्थिक रूप से तंगी का हवाला देकर जरूरतमंदों की पेंशन जारी नहीं कर आयुक्त मधुप व्यास ने निगम को भाजपा आलाकमान की नजर में ला दिया है। हालांकि, भाजपा उपाध्यक्ष और दिल्ली प्रभारी श्याम जाजू के हस्तक्षेप के बाद व्यास ने अपने व्यवहार पर खेद जताया। बजट सत्र में पार्किंग, विज्ञापन, शिक्षा और यूपिक नंबर के साथ गृह कर के दायरे को बढ़ाने जैसे अन्य मदों में प्रस्ताव पेश कर खुद को अव्वल साबित करने का नुस्खा भी निकाल सकते हैं।

उत्तरी निगम के आयुक्त और जोन के उपायुक्तों सहित निगम के आला अधिकारियों के व्यवहार पर नाराजगी जताते हुए पिछले हफ्ते जब निगम पार्षदों ने सदन में अधिकारियों को घेरने की कोशिश की तो मधुप व्यास के एक जवाब ने निगम को सन्न कर दिया था। ऊपर भगवान और नीचे मेयर और स्थाई समिति के अध्यक्ष को सर्वेसर्वा बताने वाले आयुक्त ने हंगामा होने के बाद यह कहकर मामले को शांत करने की कोशिश की कि अगर उनकी बातों से चुने हुए जनप्रतिनिधियों को ठेस पहुंची है तो वे खेद जताते हैं।

निगम सूत्रों का कहना है कि उत्तरी निगम के 2017-18 में आयुक्त व्यास आर्थिक संकट का रोना रोकर कई ऐसे प्रस्ताव पेश करेंगे जिसका विरोध निगम पार्षदों को महंगा पर सकता है। साल 2016-17 के बजट में प्रस्तावित की गई अधिकतर घोषणाएं जमीन पर लागू नहीं हो पार्इं। इसमें एचडी वीडियो कांफ्रेंसिंग, रोहिणी में डायग्नोस्टिक लेबोरेटरी, विज्ञापन व पार्किंग ठेकेदारों के लिए सॉफ्टवेयर का निर्माण और 25 स्थानों पर साइकिल स्टैंड बनाने सहित अन्य प्रस्ताव लागू हैं। इसी तरह के कई प्रस्ताव दक्षिणी और पूर्वी निगम में भी लंबित है। इसलिए राजस्व बढ़ाने और निगम की माली हालत सुधारने के नाम पर नए कर लगाने का प्रस्ताव लाकर आयुक्त अपने मंसूबे को जहां पूरा करना चाहते हैं वहीं पार्षदों और मेयर को यह संदेश देना चाहते हैं कि अधिकारियों से मिल-जुलकर ही निगम को चलाया जा सकता है।

पार्षदों को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती करने का मन बना चुके आयुक्त ने पिछले दिन स्थाई समिति की बैठक में साफ तौर पर कहा था कि वे निगम की माली हालत को सामने लाने के लिए श्वेत पत्र जारी करेंगे। निगम का घाटा बढ़ता जा रहा है। जिसके कारण कर्मचारियों को वेतन, पेंशन और विकास के अन्य काम पूरा करने में मुश्किलें आ रही हैं। पूर्वी और उत्तरी निगम की माली हालत बंटवारे के बाद से ही खस्ताहाल बनी हुई है। पिछले साल भी पूर्वी निगम के आयुक्त ने बजट में कई तरह के करों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव पेश किया था। जिसे भाजपा ने सदन और स्थाई समिति में सिरे से खारिज कर दिया था। हालांकि यह सच है कि निगमों की माली हालत सुधारने के लिए तृतीय मूल्यांकन समिति की सिफारिशों लागू करने और चौथे वित्त आयोग की सिफारिशें लागू करने समेत पूर्व में प्रस्तावित शिक्षा, व्यवसाय कर और केंद्र सरकार के ठोस कूड़ा प्रावधान अधिनियम 2016 को लागू करने का प्रस्ताव एक बार फिर रखा जा सकता है।

 

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