सभापति वैंकेया नायडू के फैसले को अदालत में चुनौती देंगे शरद यादव

खुद को राज्यसभा की सदस्यता के अयोग्य घोषित किए जाने के सभापति एम वैंकेया नायडू के फैसले को शरद यादव अदालत में चुनौती देंगे। उन्होंने गुरुवार को कहा कि वे सदन और सभापति की संस्था का सम्मान करते हुए उनके फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। शरद ने कहा, सभापति का फैसला सिर-माथे पर, मैं इस फैसले के लिए मानसिक रूप से पहले ही तैयार था। अभी यह लड़ाई आगे जारी रहेगी। चुनाव आयोग के फैसले की तरह इस फैसले को भी कानून की अदालत में और जनता की सर्वोच्च अदालत में ले जाएंगे।
यादव ने कहा कि आयोग और न्यायालय से लेकर जनता की अदालत, इस लड़ाई के तमाम मोर्चे हैं, वास्तविक लड़ाई सिद्धांत की है, जिसका मकसद जनता से करार तोड़ने वालों को बिहार और देश भर में बेनकाब करना है।
उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री और जद (एकी) नेता नीतीश कुमार को जमकर आड़े हाथों लिया। सैद्धांतिक आधार पर शरद को पहले ही इस्तीफा देने की नसीहत देने के सवाल पर उन्होंने कहा, 43 साल में 11 बार संसद सदस्य की शपथ ली है और तीन बार राज्यसभा से इस्तीफा दिया। सिद्धांत का तकाजा तो यह है कि नीतीश को जनता से हुए करार को रातोरात तोड़ने के बाद विधानसभा भंग कर फिर भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए था।
उनकी सदस्यता के मामले में जद (एकी) नेतृत्व की शिकायत को राज्यसभा की किसी समिति के सुपुर्द करने के बजाय उप राष्ट्रपति नायडू द्वारा त्वरित न्याय का हवाला देकर फैसले को सही ठहराए जाने के सवाल पर यादव ने कहा, भगोड़ा घोषित किए गए विजय माल्या का मामला आचरण समिति को भेजा गया, यहां तक कि आतंकवादी कसाब को भी न्याय के सभी विकल्प मुहैया कराए गए, जबकि शरद यादव के लिए न्याय के सभी दरवाजे बंद कर सीधे सभापति ने फैसला सुना दिया।