विकास को झटका
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून में देश का सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) घट कर 5.7 प्रतिशत पहुंच गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में यह 6.1 प्रतिशत था। राजग सरकार के तीन साल के कार्यकाल के दौरान यह अब तक सबसे निचला स्तर है। क्या इसकी वजह नोटबंदी थी? इस सवाल पर तो विशेषज्ञों में मतभेद हैं। अलबत्ता ज्यादातर अर्थशास्त्री और आर्थिक विशेषज्ञ जीएसटी (वस्तु एवं सेवाकर) के लागू होने को एक वजह के तौर पर देख रहे हैं। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भी ने इस गिरावट पर चिंता प्रकट की है लेकिन उन्होंने उम्मीद जताई कि वित्त वर्ष की समाप्ति तक सात प्रतिशत तक की वृद्धि दर हासिल हो सकती है। वित्त मंत्री ने कहा कि सेवा क्षेत्र की स्थिति सुधरेगी और निवेश बढ़ने के भी आसार हैं।
सीएसओ (केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय) ने गुरुवार को जब यह आंकड़ा जारी किया तो न सिर्फ आर्थिक जगत बल्कि राजनीतिक हलके में बेचैनी छा गई। चिंता की एक वजह यह भी रही कि भारत को तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जाता है और अक्सर इसकी चीन से तुलना भी की जाती है। लेकिन यह लगातार दूसरी तिमाही रही जब भारत की आर्थिक दर चीन से पीछे रही। चीन ने जनवरी-मार्च और अप्रैल-जून की तिमाहियों में 6.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी। जबकि इससे पिछली तिमाही यानी जनवरी-मार्च में भी भारत की जीडीपी की वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रही थी।
केंद्र में राजग सरकार ने मई 2014 में कार्यभार संभाला था। जानकारों का कहना है कि विनिर्माण क्षेत्र, सीमेंट उत्पादन, उर्वरक उत्पादन और पेट्रोलियम उत्पादन के क्षेत्र में काफी गिरावट रही, जिसकी वजह से यह स्थिति सामने आई। सांख्यिकीविदों का मानना है कि विनिर्माण सकल मूल्यवर्द्धित (जीवीए) का चौहत्तर प्रतिशत हिस्सा निजी क्षेत्र से आता है। इस क्षेत्र का प्रदर्शन काफी खराब रहा, क्योंकि जीएसटी लागू होने से पहले कंपनियां अपना जमा माल निपटाने में लगी रहीं। हैरत की बात है कि जीडीपी की मौजूदा दर का अनुमान लगाने में बाजार के विशेषज्ञ भी विफल रहे हैं। उनका अनुमान था कि मौजूदा आंकड़ा जनवरी-मार्च के 6.1 प्रतिशत आंकड़े से कुछ ऊंचा रहेगा। कुछ विशेषज्ञ तो वित्त मंत्री के अनुमान के उलट यह आशंका भी जता रहे हैं कि अब पूरे साल यह वृद्धि दर 6.3 प्रतिशत के नीचे ही रहेगी।
वृद्धि दर के मसले पर आर्थिक विशेषज्ञ बंटे हुए नजर आ रहे हैं। ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पिछले साल नवंबर में नोटबंदी और इस साल जीएसटी लागू करने के चलते विकास दर में यह कमी दर्ज की गई। जबकि मुख्य सांख्यिकीविद टीसीए अनंत ने नोटबंदी के असर को खारिज कर दिया। उनकी यह दलील काबिलेगौर है कि अगर नोटबंदी वजह होती तो यह गिरावट 2016-17 की तीसरी तिमाही से आती, जबकि गिरावट तो दूसरी तिमाही से ही शुरू हो गई थी। हालांकि उन्होंने जीएसटी के असर को स्वीकार किया। वजह जो भी हो, जीडीपी में इस तरह की गिरावट सचमुच चिंता का विषय है। सरकार के लिए यह चुनौती है कि कैसे वह स्थिति से उबरे। एक तरफ पूरी दुनिया में भारत के बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के चर्चे हैं और दूसरी तरफ यह हाल है! साथ ही, उन कारकों का पता लगाना भी बेहद जरूरी है जिनकी वजह से यह चिंताजनक स्थिति पैदा हुई।