खस्ताहाल इंजीनियरिंग कॉलेज: नए दाखिले नहीं हुए तो कैंपस में खुला अखाड़ा
इंजीनियरिंग की तरफ छात्रों के रुझान में आया ज्वार लगता है अब शांत हो चुका है। यही वजह है कि देशभर के इंजीनियरिंग कॉलेज बुरे दौर से गुजर रहे हैं। छात्रों का मोह भंग होने से ऐसे कई कॉलेज या तो बंद हो चुके हैं या बंद होने के कगार पर हैं। सोनीपत (हरियाणा) के बाली गांव में स्थित भगवान परशुराम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग ऐसी ही स्थितियों का शिकार हुआ है। जिस जगह पर कभी मेकेनिकल स्ट्रीम के छात्रों के लिए वर्कशॉप हुआ करता था, वहां अब पहलवानी के दाव-पेंच सीखे जा रहे हैं। जी हां! बीटेक और बीई के प्रति छात्रों का मोह भंग होने के कारण यह स्थान खाली हो गया था, जिसे अब लंदन ओलंपिक में देश के लिए कांस्य पदक जीतने वाले मशहूर पहलवान योगेश्वर दत्त को पांच साल की लीज पर दे दिया गया है। अब यहां योगेश्वर दत्त रेसलिंग एकेडमी चलता है, जहां कुश्ती के गुर सिखाए जाते हैं।
कॉलेज के प्रिंसिपल एसके भारद्वाज ने बताया कि कॉलेज के मेकेनिकल ब्रांच में 115 छात्रों के बैच की व्यवस्था थी। साठ छात्रों का आखिरी बैच वर्ष 2016 में निकला था। नए दाखिलां में गिरावट के चलते कॉलेज प्रबंधन ने 27 एकड़ में फैले कैंपस का एक हिस्सा पांच वर्षों के लिए योगेश्वर दत्त को दे दिया। भारद्वाज ने बताया कि इस कॉलेज के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के सभी पांच ब्रांच (कंप्यूटर साइंस, सिविल, मेकेनिकल, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स) में एक भी नया दाखिला नहीं हुआ था। इसे देखते हुए प्रबंधन को यह कदम उठाना पड़ा, ताकि संस्थान को कूड़े में तब्दील होने से बचाया जा सके। विभाग के सभी शिक्षकों को 2015 में ही निकाल दिया गया था। भारद्वाज भी अपने बच्चों के साथ अब गुड़गांव में रहते हैं। भगवान परशुराम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की हालत देश में इंजीनियरिंग के प्रति छात्रों के घटते रुझानों को दिखाता है।
कैंपस प्लेसमेंट की खराब हालत: तकनीकी शिक्षा को नियमित करने वाली सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर के 3,291 इंजीनियरिंग कॉलेजों में बीटेक/बीई के लिए 15.5 लाख सीटें उपलब्ध हैं। वर्ष 2016-17 में आधी से ज्यादा (51 प्रतिशत) सीटें खाल थीं। देश की तकनीकी शिक्षा में इंजीनियरिंग की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत तक की है। पिछले साल कुल आठ लाख छात्र बीई/बीटेक की पढ़ाई पूरी कर निकले थे, इनमें से महज 40 फीसद छात्र ही कैंपस प्लेसमेंट के जरिये नौकरी पाने में सफल रहे थे। एआईसीटीई के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच वर्षों से कैंपस प्लेसमेंट के माध्यम से नौकरी पाने वाले छात्रों की संख्या 50 प्रतिशत से भी कम रही है। संस्था पिछले पांच वर्षों से 70 फीसद या उससे ज्यादा रिक्त सीटों वाले तकनीकी संस्थानों को बंद करने का निर्देश देने पर विचार कर रहा है।
लचर व्यवस्था: इंजीनिरिंग कॉलेजों की बदहाल स्थिति के लिए लचर व्यवस्था के जिम्मेदार होने की बात समाने आई है। इनमें भ्रष्टाचार, बेहद कम सुविधाएं, लैब और शिक्षकों की कमी, उद्योग जगत से जुड़ाव का आभाव और उचित माहौल की कमी मुख्य हैं। आईआईटी कानपुर के अध्यक्ष और मारुति सुजुकी के प्रमुख आरसी भार्गव ने बताया कि बेहद निम्न गुणवत्ता की शिक्षा देने के कारण ऐसे संस्थान बंद हो रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर ग्रैजुएट छात्रों को इंजीनियरिंग की मौलिक जानकारी तक नहीं होती है। ऐसे में नौकरी नहीं मिलने के कारण खाली सीटों की तादाद में लगातार बढ़ रही है। कंपनियां समझती हैं कि ऐसे छात्र उनके लिए उपयोगी नहीं हैं। ज्यादातर लोग कहने लगे हैं कि 80 प्रतिशत इंजीनियरिंग छात्र रोजगार पाने के योग्य नहीं हैं।’
दस राज्यों में सबसे ज्यादा खाली सीटें: देश के 10 राज्यों में स्थित इंजीनियरिंग कॉलेजों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। इनमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात, केरल और हरियाणा शामिल हैं। नए छात्रों के दाखिला न लेने के मामले में हरियाणा (74 प्रतिशत) की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है। तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 2.79 लाख सीटें हैं, जिनमें से 48 फीसद रिक्त हैं।