ओशो कहते थे- लड़के-लड़कियों को अलग हॉस्टल में रखोगे तो समलैंगिक बनेंगे
आचार्य रजनीश ओशो अलग-अलग विषयों पर दिए गए अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए जाने जाते हैं। गांधीवाद, संस्थागत धर्म और तमाम विचारधाराओं का तार्किकता के साथ आलोचना करने वाले ओशो को उनकी चर्चित पुस्तक संभोग से समाधि की ओर के लिए भी जाना जाता है। इस पुस्तक में ओशो ने सेक्स को नैसर्गिक और जीवन का अनिवार्य कृत्य बताया है। इस विचारधारा की जमीन पर ही वह संतों के ब्रह्मचर्य सिद्धांत का भी विरोध करते हैं। ओशो के इन्हीं विचारों की वजह से उनके समय से लेकर आज तक उनकी आलोचना की जाती है। सेक्स को जीवन का अनिवार्य अंग बताने वाले ओशो कहते हैं कि समाज में हो रहे यौन-अपराध में जिसे अपराधी बताया जाता है वह दरअसल अपराधी नहीं होता बल्कि इन सभी घटनाओं के पीछे हमारा समाज जिम्मेदार होता है।
ओशो का कहना है कि 14 साल की उम्र में लड़के और लड़कियां प्रजनन के योग्य हो जाते हैं, और इसी उम्र में उन्हें अलग-अलग हॉस्टल में रखा जाता है। लड़के लड़कों के हॉस्टल में और लड़कियां गर्ल्स हॉस्टल में भेज दी जाती हैं। ऐसे में उनके समलैंगिक बनने की आशंका बढ़ जाती है। ओशो कहते हैं कि 18 साल की उम्र में कामवासना चरम पर होती है और ऐसे वक्त में सामाजिक व्यवस्था में लड़के और लड़कियों को एक दूसरे से दूर रखने की कोशिश की जाती है। ऐसे में इसके दुष्परिणाम के रूप में लड़का लड़के के साथ ही लैंगिक व्यवहार शुरू कर देता है।
वह बताते हैं कि समाज में लड़कों की शादी 24 साल की उम्र में की जाती है। इस उम्र में उनकी कामवासना उतार पर होती है। 18 साल में उनमें कामवासना सबसे अधिक होती है। इस बीच उनकी शादी नहीं होती तो वह अन्य विकल्पों को आजमाते हैं और यौन- संतुष्टि के लिए हस्तमैथुन का सहारा लेते हैं। ओशो का मानना है कि कोई भी यौन-अपराध की घटना इसी यौन-कुंठा का दुष्परिणाम होती है। उनका कहना है कि समाज ने लड़के और लड़कियों को एक दूसरे से दूर तब अलग-अलग कर दिया जब उनकी कामवासना सबसे ज्यादा थी और इसकी जगह पर किसी ऐसे योग या ध्यान का विकल्प नहीं दिया जिससे काम की आग को रूपांतरित किया जा सके। फलस्वरूप समाज में यौन-अपराध अस्तित्व में आता है। ओशो का कहना है कि व्यक्ति एक रात या दिन में कम से कम चार बार संभोग कर सकता है।