हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल सरकार को फटकारा, पूछा- आप आत्महत्या पर मुआवजे का ट्रेंड सेट कर रहे हैं?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने ओआरओपी आंदोलन के दौरान आत्महत्या करने वाले एक पूर्व सैनिक के परिवार को मुआवजा देने के दिल्ली सरकार के फैसले से मंगलवार (13 दिसंबर) को असहमति जतायी और कहा ‘‘आप यह परिपाटी बना रहे हैं कि आत्महत्या कीजिए और एक करोड़ रूपए का मुआवजा पाइए।’’ अदालत की यह टिप्पणी पूर्व सैनिक को शहीद का दर्जा देने, एक करोड़ रूपए की वित्तीय सहायता और परिवार के एक सदस्य को नौकरी के फैसले पर आयी है जिन्होंने वन रैंक, वन पेंशन आंदोलन के दौरान पिछले साल नवंबर में कथित तौर पर कीटनाशक खाकर आत्महत्या कर ली थी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने कहा, ‘‘..आप एक परिपाटी बना रहे हैं, आत्महत्या कीजिए और एक करोड़ रूपए का मुआवजा प्राप्त कीजिए। और, जब आप उनके परिवार को एक करोड़ रूपए का मुआवजा दे रहे हैं तो अनुकंपा के आधार पर नौकरी का सवाल कहां पैदा होता है।’’ अदालत ने दो जनहित याचिकाओं को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाओं में राम किशन ग्रेवाल को शहीद का दर्जा दिए जाने के दिल्ली सरकार के फैसले को चुनौती दी गयी है। अदालत ने कहा कि याचिकाएं समय से पहले दाखिल की गयी हैं और इस चरण में विचार करने योग्य नहीं हैं क्योंकि उपराज्यपाल ने अभी इस पर फैसला नहीं किया है।
वहीं, उच्च न्यायालय ने केजरीवाल के खिलाफ 10 करोड़ रुपए के दूसरे मानहानि मामले में मुख्यमंत्री के लिखित बयान के जवाब में दायर अरुण जेटली के उत्तर को निरस्त करने संबंधी मुख्यमंत्री की याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि केंद्रीय मंत्री द्वारा उठाए गए अन्य मुद्दे ‘‘प्रासंगिक’’ हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने मांग की थी कि दूसरे मानहानि मामले में उनके लिखित हलफनामे के प्रत्युत्तर में जेटली द्वारा दायर जवाब को कई आधार पर खारिज कर दिया जाना चाहिए जिनमें पूर्व वकील द्वारा ‘‘अपमानजनक’’ शब्दों का इस्तेमाल करना भी शामिल है।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि जेटली द्वारा उठाए गए अतिरिक्त बिंदु ‘‘प्रासंगिक’’ हैं क्योंकि उनसे केंद्रीय मंत्री का रूख ‘‘स्पष्ट’’ होता है और इस प्रकार ‘‘उन्हें न तो अपमानजनक, न ही तुच्छ या अनावश्यक या कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग कहा जा सकता है।’’ बहरहाल अदालत ने भाजपा नेता के अतिरिक्त तर्क का खंडन करने के लिए केजरीवाल को चार हफ्ते का वक्त दिया।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अपने लिखित बयान के जवाब में दायर जेटली के पूरे उत्तर को अस्वीकार करने की मांग करते हुए एक याचिका दायर की थी। इस याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत ने यह फैसला सुनाया। केजरीवाल ने दावा किया था कि जेटली के प्रत्युत्तर में अतिरिक्त आरोप लगाए गए हैं जो वादपत्र का हिस्सा नहीं हैं और इसलिए मुख्यमंत्री के पास अपने लिखित जवाब में उनका खंडन करने का मौका नहीं है।