निहत्थी होकर भी आतंकियों से भिड़ गई थीं कमलेश, सीने पर खाईं 11 गोलियां, पर नहीं घुसने दिया संसद में
किसी से पूछा जाए कि अफजल गुरु कौन है तो वह तपाक से जवाब देगा, वही जिसने संसद हमले की साजिश रची और बदले में फांसी मिली । मगर किसी से पूछा जाए, अच्छा…कमलेश कुमारी को जानते हैं आप ? बहुत गिने-चुने लोग ही जवाब दे पाएंगे। यह अफसोस की बात है कि लोगों के जेहन में जितना दहशतगर्दों का अक्स ताजा रहता है, उतना जाबांज सिपाहियों का नहीं। इसके पीछे क्या वजह है, यह सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से अलग बहस का विषय है। बहरहाल, आज(13 दिसंबर) को संसद हमले की बरसी पर जनसत्ताऑनलाइन उस वीरांगना की कहानी आपको बता रहा, जिसकी बदौलत संसद आज भी अपनी बुलंदी पर इतरा रही है । यूपी की यह बहादुर महिला न होती तो शायद आतंकी अपनी नापाक कोशिश में सफल हो जाते, मगर कमलेश कुमारी ने शहादत देकर देश में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर को नेस्तनाबूद होने से बचा लिया। इस बहादुरी पर उन्हें अशोक चक्र प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला कांस्टेबल का गौरव प्राप्त हुआ।
वो अलॉर्म नहीं देश का भाग्य बजा था : तारीख 13 दिसंबर 2001। स्थान- संसद भवन का गेट नंबर 11। समय 11.25। संसद सत्र को स्थगित हुए 40 मिनट ही हुए थे। तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और करीब दो सौ सांसद संसद के अंदर थे। हर रोज की तरह सीआरपीएफ की महिला कांस्टेबल कमलेश कुमारी की गेट पर तैनाती थी। इस बीच अचानक सफेद अंबेसडर कार गेट 11 पर पहुंची। जिसमें सेना की वर्दी पहने पांच आतंकी एके-47 और हैंड ग्रैनेड से लैस थे। । चूंकि पांचो आतंकवादी सेना की वर्दी में थे, इस नाते उन्हें पहले कोई पहचान नहीं पाया। मगर गेट नंबर 11 पर मुस्तैद कमलेश कुमारी की नजरों को आतंकी चकमा नहीं दे सके। इस बीच पांचो आतंकी गाड़ी से उतरकर अंदर घुसने लगे। यह देख कमलेश कुमारी को सेना की वर्दी में आतंकियों के घुसने का शक हुआ। उस वक्त कमलेश निहत्थीं थीं। हथियार की जगह हाथ में वॉकी-टॉकी था। इस पर होशियारी से काम लेते हुए कमलेश कुमारी ने जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया।
यही नहीं साथी कांस्टेबल सुखविंदर सिंह को अलर्ट कर आतंकियों के घुसने की जानकारी दे दी। कमलेश कुमारी की इस तेजी से आतंकियों में हड़कंप मच गया। पकड़े जाने के डर से उन्होंने कमलेश कुमारी पर गोलियों की बौछार कर दी। इस बहादुर महिला ने 11 गोलियां खाने से पहले अलॉर्म बजा दिया। जिसके चलते पूरे संसद की सुरक्षा मशीनरी अलर्ट मोड में आ गई। उधर कमलेश कुमारी की सूचना पर सुखविंद ने दौड़कर संसद भवन के अंदर जाने के सारे गेट बंद कर दिए। तब तक पूरे संसद भवन में हल्ला मच चुका था। फिर आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ चली। 45 मिनट की मुठभेड़ के दौरान ।
ममता पर भारी पड़ी कर्तव्यपरायणता : बहादुर कास्टेबल कमलेश कुमारी की ममता पर उनकी कर्तव्यपरायणता भारी पड़ी। जब दो छोटी बेटियों की भी परवाह न करते हुए इस वीरांगना ने आतंकियों से मोर्चा लेते हुए सीने पर 11 गोलियां खाईं, मगर आतंकियों के नापाक मंसूबे सफल नहीं होने दिए। जब संसद पर हमले की घटना हुई उस वक्त कमलेश की बड़ी बेटी ज्योति नौ साल की थी तो छोटी बेटी श्वेता महज डेढ़ साल की। इस समय दोनों बेटियां 24 और 17 साल की हो चुकी हैं। ज्योति ने फतेहगढ़ के महिला डिग्री कॉलेज से बीएससी किया है। कमलेश कुमारी का परिवार फर्रुखाबाद के आवास विकास कालोनी में रहता है। दोनों बेटियां नाना राजाराम और पिता अवधेश के साथ रहतीं हैं। कमलेश कुमारी की शहादत को चिरस्थाई बनाने के लिए उनके घर सिकंदरपुर में स्मारक स्थल का निर्माण हुआ है।
बचपन से था वर्दी से प्यार : कांस्टेबल कमलेश कुमारी के परिवार वाले बताते हैं कि वे बचपन से बहादुर रहीं। फर्रुखाबाद जनपद के ग्राम नरायनपुर में रहने वाली राजाराम के घर कमलेश का जन्म हुआ। बाद में पड़ोसी जनपद कन्नौज के सिकंदरपुर निवासी अबधेश के साथ उनकी शादी हुई। फिर वह वर्ष 1988 में वह अपने ससुराल सिकंदरपुर आ गयीं । वर्ष 1994 में वर्दी पहनने का सपना पूरा हुआ, जब रैपिड एक्शन फोर्स में (आरएएफ) इलाहाबाद में तैनात मिली। जुलाई 2001 को संसद सत्र के दौरान उन्हें संसद की सुरक्षा में लगाया गया। 13 दिसम्बर 2001 को संसद में अवैध रूप से घुसती हुई अंबेसडर कार संख्या डीएल -3 सी जे 1527 जब उन्हें विजय चौक फाटक की ओर जाती हुई दिखाई दी तो उसे रोकने की कोशिश की। प्लान फेल होता देख आतंकियों ने कमलेश को गोलियों से छलनी कर दिया।
जब लौटा दिया था परिवार ने मेडल : काबिलेगौर है कि संसद हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु को दिल्ली हाईकोर्ट ने 2002 में फांसी की सजाई सुनाई, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में सजा बरकरार रखी। नौ फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में अफजल गुरु को फांसी पर लटका दिया गया था। फांसी की सजा 2002 में होने के बावजूद क्रियान्वयन में देरी पर नाराज कमलेश कुमारी के परिजनों ने मरणोपरांत मिला अशोक चक्र मेडल लौटा दिया था। अफजल गुरु की फांसी होने के बाद फिर से उन्होंने अशोक चक्र स्वीकार किया था।