धनु संक्रांति 2017: सूर्य करता है इस माह धनु राशि में प्रवेश, महाभारत से भी जुड़ा है इस दिन का महत्व

हिंदू पंचाग के अनुसार पौष माह की संक्रांति को धनु संक्रांति कहा जाता है। ज्योतिष विद्या के अनुसार माना जाता है कि इस दिन सूर्य वृश्चिक राशि से निकलकर अपने बृहस्पति ग्रह की राशि धनु में प्रवेश करता है। इस राशि को सूर्य की मित्र राशि भी कहा जाता है। दक्षिण भारत में इस दिन अधिक महत्वता होती है। इस दिन को धनुर्मास के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का महत्व होता है। धनु संक्रांति काल में सूर्य नारायण की उपासना का विशेष महत्व माना जाता है।

15 दिसंबर से लेकर 15 जनवरी तक यानि धनु संक्रांति से लेकर मकर संक्रांति तक के काल को खरमास का कहा जाता है। इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इस एक माह में सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है। इसी के साथ इस माह में पवित्र नदियों में स्नान करने की मान्यता है। शास्त्रों में कहा जाता है कि सूर्य के संक्रमण काल में जो मनुष्य स्नान नहीं करते हैं उनके जीवन से दुख और दरिद्रता कभी नहीं जाते हैं। धनु संक्रांत के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ किया जाता है। भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते, फल, सुपारी, पंचामृत, तुलसी, मेवा आदि का भोग तैयार किया जाता है। सत्यनारायण की कथा के बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती की जाती है और चरणामृत का प्रसाद दिया जाता है।

सूर्य वृश्चिक राशि से गोचर करते हुए धनु राशि में प्रवेश करने वाले हैं और पूरे एक माह तक धनु राशि में ही रहते हैं। माना जाता है जब सूर्य धनु राशि से गोचर करते हुए मकर राशि में प्रवेश करते हैं उसके बाद ही शुभ कार्य शुरु किए जाते हैं। इस माह के लिए मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में पितामह भीष्म भी खरमास के माह में धाराशायी हुए थे। माना जाता है कि उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। खरमास की समाप्ति तथा सूर्य के उत्तरायण होने पर उन्होनें अपने शरीर का त्याग किया था। इस माह में भागवत कथा सुनने के अलावा कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है।

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