गुजरात राज्यसभा चुनाव: केंद्र ने मांगी थी रिटर्निंग अफसर की रिपोर्ट, आयोग ने बैरंग लौटाया
केंद्र सरकार ने गुजरात राज्यसभा चुनाव के दो दिन बाद ही चुनाव आयोग से रिटर्निंग अफसर की रिपोर्ट मांगी थी। आयोग ने केंद्र को इसके लिए रिटर्निंग के पास जाने को कहा था। कांग्रेस ने रिटर्निंग अफसर से अपने दो बागी विधायकों के मतों को रद करने की मांग की थी। लेकिन, उनकी मांग खारिज कर दी गई थी। बाद में चुनाव आयोग ने दोनों के मतों को अमान्य करार दे दिया था। अगस्त में हुए चुनाव में तमाम राजनीतिक उठा-पटक के बाद कांग्रेस नेता अहमद पटेल जीतने में सफल रहे थे।
सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई एक्ट) के तहत के तहत हासिल दस्तावेजों से यह बात सामने अाई है। चुनाव आयोग ने केंद्र को बताया कि रिटर्निंग अफसर को राज्यसभा चुनाव में हारने वाले भाजपा उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत को रिपाेर्ट देने की अनुमति दे दी गई है। इसलिए सरकार रिपोर्ट के लिए रिटर्निंग अफसर के पास जाए। गुजरात में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए 8 अगस्त को हुआ मतदान हुआ था। चुनाव विवादों के घेरे में आ गया था। कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि उनके दो विधायक भोला भाई गोहिल और राघवजी भाई पटेल बागी हो गए हैं और अपने मत की जानकारी सार्वजनिक कर दी है। लिहाजा, उनके मतों को अमान्य करार दिया जाए। रिटर्निंग अफसर ने पार्टी के दावे को ठुकरा दिया था।
इसके बाद चुनाव आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 को अमल में लाते हुए उनके फैसले को निरस्त कर दिया और दोनों विधायकों के मत को अमान्य करार दे दिया था। इस बीच, नौ अगस्त को आए नतीजे में कांग्रेस प्रत्याशी अहमद पटेल पांचवीं बार राज्यसभा पहुंचने में सफल रहे थे। दो अन्य सीटों पर अमित शाह और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी जीती थीं। कानून मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव ने चुनाव परिणाम आने के दो दिन बाद ही 11 अगस्त को चुनाव आयोग के पास अर्जी दाखिल कर रिटर्निंग अफसर द्वारा तैयार रिपोर्ट मांगी थी। चुनाव के बाद कांग्रेस के बागी विधायकों ने वोट देने की बात सार्वजनिक कर दी थी।रिटर्निंग अफसर ने आठ अगस्त को कांग्रेस की शिकायत खारिज कर दी थी। इसके बाद कांग्रेस ने चुनाव आयोग के समक्ष शिकायत दी थी।
दूसरी तरफ, कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी उसी दिन भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ चुनाव आयोग से मुलाकात कर रिटर्निंग अफसर के फैसले को बरकरार रखने की मांग की थी। भाजपा ने दलील थी कि रिटर्निंग अफसर चुनाव, मतगणना और वोटों की वैधानिकता पर फैसला लेने वाले वैधानिक व्यक्ति होते हैं। ऐसे में चुनाव आयोग के पास उनके फैसले को रद्द करने का अधिकार नहीं है। इस प्रतिनिधिमंडल में अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद और निर्मला सीतारमण भी शामिल थीं। चुनाव आयोग इससे सहमत नहीं हुआ था।