एलजी ने किया मैक्‍स हॉस्‍पिटल का लाइसेंस बहाल, अरविंद केजरीवाल ने किया था रद्द

राजधानी दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के उस फैसले पर रोक लगा दी है जिसमें उन्होंने शालीमार बाग स्थित मैक्स हॉस्पिटल का लाइसेंस रद्द कर दिया था। हॉस्पिटल के खिलाफ ये बड़ी कार्रवाई इस महीने तब की गई जब हॉस्पिटल प्रशासन ने नवजात शिशु को मृत घोषित कर दिया। बाद में जिंदा बच्चे को शव रखने वाले एक बैग में सील कर उसे माता-पिता के हवाले कर दिया। लेकिन बैग में हरकत होने पर जब उसे खोला गया तो शिशु जिंदा था। इसपर केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने घटना को गंभीर चूक करार देते हुए हॉस्पिटल का लाइसेंस रद्द कर दिया। इसकी पुष्टि तब खुद स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की थी।

वहीं जैन के फैसले के बाद हॉस्पिटल ने उप राज्यपाल के समक्ष उनके फैसले को चुनौती दी थी। जिसके बाद इस फैसले पर अब उप राज्यपाल ने रोक लगा दी है। बता दें कि केजरीवाल सरकार के इस फैसले पर पूर्व में दिल्ली के भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने भी सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि दिल्ली सरकार को प्राइवेट हॉस्पिटल को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए।

गौरतलब है कि डॉक्टरों द्वारा जिंदा शिशु को मृत घोषित करने हॉस्पिटल ने उन डॉक्टरों को सस्पेंड कर दिया था दरअसल मैक्स अस्पताल के डॉक्टरों ने जुड़वां बच्चों को मृत घोषित कर उन्हें शव रखने वाले बैग में सील कर माता-पिता के हवाले कर दिया था। दो में से एक नवजात में हरकत होने पर परिजनों ने आनन-फानन में बैग खोला। इसके बाद शिशु और उसकी मां को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था।

तब अभिभावकों का आरोप था कि डॉक्टरों की इस गंभीर लापरवाही के कारण दम घुटने से नवजात की मौत भी हो सकती थी। इस घटना के सामने आने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय भी सक्रिय हो गया था। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने स्वास्थ्य सचिव से इस मसले पर बात कर जानकारी हासिल की थी।

उधर बच्चे के पिता आशीष द्वारा दायर कराई गई एफआईआर में कई बातों का खुलासा हुआ था। इसमें कहा गया था कि अस्पताल ने नवजात को नर्सरी में रखने के लिए 50 लाख रुपए मांगे थे। आशीष ने बताया था कि उसकी पत्नी ने मात्र छह माह के गर्भ के बाद ही जुड़वां बच्चों को जन्म दे दिया था, अस्पताल ने दोनों ही बच्चों को मृत घोषित कर दिया था, लेकिन बाद में यह सामने आया कि उनमें से एक बच्चा जीवित था। समय से पहले जन्म लेने के कारण वह कमजोर था, जिसकी वजह से उसे नर्सरी में रखना जरूरी था, ऐसे में अस्पताल ने बच्चे को खतरे से बाहर आते तक के समय के लिए नर्सरी में रखने के लिए उनसे 50 लाख रुपए मांगे थे।

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