सिर्फ संख्या नहीं, एक-दूसरे के विचारों का सम्मान है लोकतंत्र: वेंकैया नायडू
लोकतंत्र सिर्फ संख्या नहीं बल्कि एक दूसरे के विचारों का सम्मान करना भी है। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने बुधवार को यह बात कही। उपराष्ट्रपति ने ‘12 वें रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड्स’ समारोह में दिए गए अपने मुख्य संबोधन में कहा, ‘मैं अब सभी दलों का व्यक्ति हूं और राज्यसभा का सभापति होने के नाते, मुझे निष्पक्षता और तटस्थता के अपने दायित्यों का निर्वहन करना जरूरी है। और यही बात अच्छी पत्रकारिता के लिए भी लागू होती है। मैंने यह भी सीखा है कि चर्चा और संवाद, विचारों का आदान प्रदान और विभिन्न मतों में असहमतियों के बीच सहमति बनाना एक स्वस्थ और जीवंत लोकतंत्र का मौलिक तत्व है। लोकतंत्र का मतलब सिर्फ संख्या ही नहीं बल्कि एक दूसरे के विचारों को समझना और सराहना है। हमें फैसले पर पहुंचने के लिए बहस और चर्चा करनी ही होगी।’
मुख्य अतिथि के रूप में उपराष्ट्रपति ने प्रिंट व ब्रॉडकास्ट, अंग्रेजी व भाषाई 27 पत्रकारों को 25 श्रेणियों में उत्कृष्ट कार्य के लिए पुरस्कार प्रदान किए। मीडिया की जिम्मेदारी दर्शाते हुए, नायडू ने कहा, ‘मेरे विचार में मीडिया की भूमिका सूचना, सामाजिक जागृति, सहभागिता निर्माण, व्यक्ति प्रेरणा, बेहतर जीवन के लिए सामूहिक प्रयास, शांति और सौहार्द को बढ़ावा देकर लोगों का सशक्तीकरण करने के लिए होना चाहिए। हर समाचार का असर समझदारी विकसित करना और प्रेरणादायक होना चाहिए।’.
पुरस्कारों का हवाला देते हुए, नायडू ने कहा, ‘इन पुरस्कारों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अगुआ के नाम पर स्थापित किया गया है और ये सही मायनों में देश के प्रतिष्ठित पत्रकारिता पुरस्कार बन गए हैं। रामनाथ गोयनका ने साहस और प्रतिबद्ध पत्रकारिता के बेहतरीन गुणों को सन्निहित किया: हर तरह की आजादी, तथ्यों का अनथक पीछा करना, दबावों में न झुकने का मजबूत दृढ़संकल्प, सवाल पूछते रहना और हर चुनौती के बावजूद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर कायम रहना। ये विशेषताएं नागरिकता के सर्वोच्च सिद्धांतों का गठन करती हैं और हमारे लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए आवश्यक हैं।.
यह पुरस्कार समारोह उन खबरों की स्वीकृति थी, जिन्होंने 2016 में घेरेबंदी को धक्का दिया। कट्टरपंथी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर में हिंसा को लेकर प्रभावशाली रिपोर्ट से लेकर बड़े शहरों के सपने का पीछा करने वाली युवा ग्रामीण महिला की दिल को छू लेने वाली कहानी तक; ढाका में आतंकवादी हमलों के बाद डर और चिंता को दर्शाती गहन रिपोर्ट से लेकर पनामा पेपर्स में आठ महीने तक की छानबीन जिसने भारतीय नामों का खुलासा किया। अपने प्राइमटाइम शो में टेलीविजन स्क्रीन को काला कर टेलीविजन मीडिया में फैले अंधकार के बारे में दर्शकों को बताने के लिए एनडीटीवी के रवीश कुमार ने हिंदी पत्रकारिता का पुरस्कार जीता। हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर की स्थिति के बारे में छपी रिपोर्ट पर हिंदुस्तान टाइम्स के अभिषेक साहा ने जम्मू एवं कश्मीर और पूर्वोत्तर श्रेणी में पुरस्कार जीता। ‘अनकवरिंग इंडिया इनविजिबल’ श्रेणी में मलयाला मनोरमा के एसवी राजेश को केरल के आदिवासी ग्राम पंचायत में गरीबी और अभाव के बारे में छपी उनकी शृंखलाबद्ध खबरों के लिए पुरस्कृत किया गया।
इंडियन एक्सप्रेस की रितु सरीन, पी वैद्यनाथन अय्यर और जय मजूमदार को पनामा पेपर्स मामले में खोजी खबरों के लिए पुरस्कृत किया गया। ‘फॉरेन कॉरेस्पांडेंट कवरिंग इंडिया’ श्रेणी में बड़े शहरों के सपने का पीछा करने वाली एक ग्रामीण युवती के बारे में रिपोर्ट के लिए न्यूयॉर्क टाइम्स के एलेन बेरी को पुरस्कृत किया गया। ब्रिटिश राज के अत्याचारों के मार्मिक वर्णन के लिए शशि थरूर को उनकी पुस्तक ‘एन एरा आॅफ डार्कनेस: द ब्रिटिश एंपायर इन इंडिया’ पर पुस्तक (नॉन-फिक्शन) श्रेणी में पुरस्कार दिया गया।
विजेताओं को एक प्रतिष्ठित जूरी ने चुना था, जिनमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बीएन श्रीकृष्णा, एचडीएफसी लिमिटेड के चेयरमैन दीपक पारेख, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी और वरिष्ठ पत्रकार पामेला फिलिपोसे शामिल थे। देश भर से आठ सौ से ज्यादा प्रविष्टियां आई थीं, अधिकांश क्षेत्रीय भाषाओं से थीं। द एक्सप्रेस ग्रुप ने अपने संस्थापक रामनाथ गोयनका के शताब्दी वर्ष समारोह के तौर पर 2006 में ‘रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड्स’ शुरू किया था। इन पुरस्कारों का उद्देश्य पत्रकारिता में उत्कृष्टता का सम्मान करना, साहस और प्रतिबद्धता की स्वीकृति और देशभर के पत्रकारों के उत्कृष्ट योगदान को सामने लाना है।