इटावा में नहीं थम रहा है शिशुओं के शवों को फेंके जाने का सिलसिला
शहर में लगातार एक के बाद एक करके नवजात शिशुओं को फेंके जाने के वाक्यों ने स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की पोल खोल करके रख दी है। सरकार के निर्देशों के बाद अवैध गभर्पात पर पूरी तरह से रोक लगा कर रखी हुई है लेकिन उसके बाद भी लगातार एक के बाद एक करके मिल रहे नवजातों के शवों को देख कर ऐसा महसूस हो रहा है कि स्वास्थ्य विभाग के अफसर नर्सिंग होमो की निगरानी करके में हीलाहवाली बरत रहे हैं। शुक्रवार दोपहर करीब एक बजे के आसपास सिविल लाइन थाना क्षेत्र में स्थापित डॉ.भीमराव अंबेडकर राजकीय संयुक्त चिकित्सालय से करीब सौ मीटर पहले आम रास्ते पर झाड़ियों में एक नवजात बच्चे के शव को इलाकाई लोगों ने देखा। उसके बाद पुलिस ने मौके पर आकर पूरे मामले को देखने और समझने की जहमत उठाई। मौके के हालात को देखने के बाद कई इलाकाई लोगों ने स्वीकारा कि किसी बिन ब्याही मां ने इस बेटे को जन्मने के बाद फेंक दिया होगा उससे उसकी कड़ाके की सर्दी लगने से मौत हो गई है।
शव मिलने की खबर मिलने के बाद सिविल लाइन थाने के एसएसआइ विकास दिवाकर मौके पर पुलिस दल के साथ पहुंचे। जिन्होने शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया।
उन्होने बताया कि शव का पोस्टमार्टम तीन दिन बाद कराया जायेगा क्योंकि अज्ञात शव के मामले में शासन के निर्देशों को पालन किया जाना है । इससे पहले बीते तीन नवंबर को भी जिला मुख्यालय पर स्थापित डॉ.भीमराव अंबेडकर राजकीय संयुक्त चिकित्सालय परिसर से दोपहर करीब दो बजे के आसपास एक नवजात के शव को कुत्ते अपना निवाला बनाते हुए देखे जाने के बाद पर हडंकप मच गया था।
तीन मार्च को भी इसी स्थान पर दो नवजात बच्चों के शव मिले थे। तब अंदाजा लगाया गया था कि बच्चे मृत पैदा हुए होंगे, जिसकी वजह से उन्हें नहर मेंं प्रवाहित कर दिया गया। लेकिन तीन दिन बाद दोबारा से उसी स्थान पर शव मिलने से यह स्पष्ट हो गया है कि क्षेत्र मेंं अवैध गभर्पात कराया जा रहा है। जहां बच्चों के शव मिले हैं उसके करीब दो किलोमीटर के दायरे मेंं चार निजी अस्पताल संचालित किए जा रहे हैं।
नहर मेंं बच्चों के शव मिलने पर चितभवन गांव के प्रधान मनोज कुमार त्रिपाठी का कहना है कि कि अवैध गभर्पात मेंं क्षेत्र की कुछ महिलाएं शामिल हैं। कुछ महिलाएं मोटी रकम वसूलकर अवैध गभर्पात कराती हैं। गभर्पात के बाद शवोंं को ठिकाने लगाने का काम भी इनके ही हाथ मेंं होता है। हालांकि इसके पुख्ता सबूत तो नहींं हैं, लेकिन फिर भी यह जांच का विषय है।
नवजात शिशुओं को फेंके जाने के मामले ने स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की नींद खराब कर रखी है। सरकार के निर्देशों के बाद भी अवैध गभर्पात पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकी है।