बदलाव के बावजूद

पिछले कुछ समय से जिस तरह केंद्र सरकार के प्रदर्शन को लेकर अंगुलियां उठनी शुरू हो गई थीं, उसमें माना जा रहा था कि मंत्रिमंडल में बदलाव करते समय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और योजनाओं में गतिशीलता लाने के मद्देनजर कुछ नए लोगों को लाया और कुछ की जिम्मेदारियों में बदलाव किया जाएगा। मगर ताजा फेर-बदल में यह मकसद नजर नहीं आता। इस फेर-बदल पर आगामी विधानसभा चुनावों की छाया भी नहीं देखी जा सकती। माना जा रहा था कि बिहार में जनता दल (एकी) के साथ नए गठजोड़ के बाद केंद्र में उसके कुछ लोगों को सरकार में जगह मिलेगी, मगर ऐसा भी नहीं हुआ। बस कुछ पुराने लोगों के विभाग बदल दिए गए और जिन नौ राज्यमंत्रियों को शामिल किया गया, उनसे बहुत उम्मीद बंधती नजर नहीं आती। नौ में से चार राज्यमंत्री पूर्व प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं। उनमें से दो संसद के सदस्य भी नहीं हैं। ऐसे में स्वाभाविक ही सवाल उठ रहे हैं कि क्या भाजपा के भीतर नेताओं की कमी है, जो बाहर से नौकरशाहों को लाकर मंत्री बनाया जा रहा है। फिर यह भी कि क्या जिन लोगों के कामकाज से प्रधानमंत्री खुश नहीं थे या जिनके चलते सरकार के सामने मुश्किलें खड़ी होती रही हैं, उनके विभाग बदल देने भर से उनका प्रदर्शन बेहतर हो जाएगा!

देश की विकास दर घटी है। निर्यात में अभूतपूर्व गिरावट आई है। यानी सरकार के लिए अर्थव्यवस्था के अपने लक्ष्य तक पहुंचना कठिन हो गया लगता है। इसी तरह सीमा पर हर समय तनाव का माहौल बना हुआ है। प्रतिरक्षा के मामले में चौकस रहने की जरूरत है। इसलिए निर्मला सीतारमण को वाणिज्य से हटा कर रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपे जाने पर सवाल उठ रहे हैं। उनके वाणिज्य मंत्री रहते निर्यात दर में अभूतपूर्व गिरावट आई। रक्षा मंत्रालय का काम उससे अधिक चुनौतीपूर्ण है, इसलिए वे यहां कितनी सफल साबित होंगी, देखने की बात है। इसी तरह मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में स्मृति इरानी का कामकाज संतोषजनक नहीं रहा, कपड़ा मंत्री रहते भी वे कोई उल्लेखनीय काम नहीं कर पाईं, अब उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वहां वे अपनी योग्यता कहां तक साबित कर पाती हैं, वक्त बताएगा। पिछले कुछ समय में हुए बड़े रेल हादसों की वजह से सुरेश प्रभु के कामकाज को लेकर लोगों में असंतोष बना हुआ है, तो प्रधानमंत्री की महत्त्वाकांक्षी गंगा सफाई योजना नमामि गंगे को लेकर उमा भारती का कामकाज संतोषजनक नहीं रहा, मगर इनके मामले में भी प्रधानमंत्री सख्त नजर नहीं आए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर शुरू से आरोप लगते रहे हैं कि वे प्रतिभाशाली लोगों के बजाय कमजोर लोगों को अपने साथ जोड़े रखना चाहते हैं। नए मंत्रिमंडल में चार पूर्व नौकरशाहों को शामिल करने से एक बार फिर इस आरोप को बल मिला है। ऐसा नहीं माना जा सकता कि भाजपा में योग्य नेताओं की कमी है, पर क्या वजह है कि पार्टी के निष्ठावान लोगों को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का मौका देने के बजाय बाहर के लोगों को अहम जिम्मेदारियां सौंपी जाती रही हैं। इससे पार्टी के भीतर असंतोष को बल मिलेगा। आम चुनाव का समय नजदीक आ रहा है और सरकार के मंत्रियों पर बड़ी जिम्मेदारी है कि वे अगले डेढ़ सालों में अपना प्रदर्शन बेहतर कर लोगों में उभर रहे असंतोष को दूर करें। ऐसा वे कहां तक कर पाएंगे, कहना मुश्किल है।

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