कभी भारत के लिए जीते कई मेडल, अब टैक्सी चलाकर 8000 रुपये महीने कमाता है यह ओलंपिक बॉक्सर

भारत के लिए कई पदक जीतने वाले लक्खा सिंह की माली हालत इतनी खराब है कि वो दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए टैक्सी चला रहे हैं। टैक्सी भी उनकी अपनी नहीं है, वह किराए पर लेकर उसे चलाते हैं और महीने का 8000 रुपये कमा लेते हैं। 1990 के दौर में लक्खा सिंह अपनी बॉक्सिंग की वजह से जाने जाते थे। साल 1994 लक्खा सिंह के लिए बेहद खास था, इसी साल उन्होंने एशियन बॉक्सिंग चैंपिनशिप में सिल्वर मेडल हासिल किया था। इतना ही नहीं इसके अगले साल भी लक्खा सिंह का यह प्रदर्शन ऐसे ही जारी रहा और उन्होंने एक और सिल्वर मेडल अपने नाम किया। लक्खा ने 1994 के हिरोशिमा एशियाड में 81 किलो कैटिगरी में देश के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीता था। उन दिनों हर जगह लक्खा सिंह अपनी काबलियत की वजह से सुर्खियां बटोर रहे थे। हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में पूर्व ओलंपियन विजेता लक्खा सिंह ने बताया कि अगर सरकार चाहती तो मैं बहुत कुछ कर सकता था लेकिन सरकार ने मुझे उस दौरान नजरअंदाज किया और मेरी आर्थिक हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती चली गई।

लक्खा सिंह के मुताबिक उन्हें आईएबीएफ (भारतीय अमेचर बॉक्सिंग फेडरेशन) और राज्य सरकार की तरफ से कभी कोई मदद नहीं मिली। हालांकि, उन्होंने 2006 के बाद कई बार अपनी स्थिति के बारे में उन्हें बताया है, इसके बावजूद भी उन्हें हमेशा ही नजरअंदाज किया गया। बता दें कि लक्खा सिंह लुधियाना के गांव हलवाड़ा के रहने वाले हैं। लेकिन करीब 10 साल तक वह अपने गांव से दूर रहे। दरअसल, 19 साल की उम्र में 1984 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे। लेकिन 1990 के बाद वो बॉक्सिंग की तरफ आ गए।

1998 में उन्हें एक अन्य बॉक्सर दीबेंद्र थापा के साथ वर्ल्ड मिलिटरी बॉक्सिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लेना था। लक्खा सिंह बताते हैं कि दीबेंद्र थापा अमेरिका में प्रोफेशनल बॉक्सिंग में अपना करियर बनाना चाहता था लेकिन मुझे इसकी जानकारी नहीं थी। काफी दिनों तक जब हम वापस नहीं लौटे तो लोगों को लगा कि दोनों अमेरिका में सेट हो गए, जिसके बाद सेना ने भी मुझे भगोड़ा घोषित कर दिया। लेकिन ऐसा नहीं था मैं 8 साल तक वहां गैस स्टेशन, रेस्त्रां और कंस्ट्रक्शन साइट पर काम किया। इसके बाद मैं 2006 में अपने गांव आने में सफल रहा।

 

 

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