बवाना उपचुनाव के नतीजे आने के बाद तो केजरीवाल आए पुरानी रंगत में

रंगत में वापसी

नवजात शिशु जब बोलना शुरू करता है तो कहते हैं कि उसका कंठ फूट रहा है। बवाना विधानसभा उपचुनाव जीतने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविंद केजरीवाल का कंठ भी उसी तरह फूटा। पंजाब विधानसभा चुनाव, राजौरी गार्डन उपचुनाव व नगर निगम चुनाव में मिली हार और पार्टी में हुई बगावत के बाद केजरीवाल समेत सभी आप नेताओं की बोलती बंद हो गई थी। हर मुद्दे पर बोलने वाले और हर बात के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उपराज्यपाल पर आरोप लगाने वाले केजरीवाल भी किसी भी मुद्दे पर मुंह खोलने से परहेज करने लगे थे। दो महीने बवाना विधानसभा क्षेत्र की खाक छानने के दौरान भी उन्होंने सिर्फ वहीं के मतदाताओं को लुभाने के लिए बयान दिए और मुद्दों से हट कर कोई बात नहीं की। लेकिन बवाना उपचुनाव के नतीजे आने के बाद तो केजरीवाल पुरानी रंगत में आ गए। हाल ही में उनके ज्यादातर विधायक मोहल्ला क्लीनिक न खोलने देने के विरोध में घंटों उपराज्यपाल के सामने डटे रहे और उल्टा-सीधा बोलते रहे। वहीं केजरीवाल ने भी दिल्ली के हित में कोई भी काम करने की घोषणा कर डाली। वैसे अभी भी वे पूरी तरह से अपनी रंगत में नहीं आ पाए हैं। लगता है कि छोटे बच्चे की तरह धीरे-धीरे ही पूरी लय में आएंगे।

खतरे की घंटी
बवाना उपचुनाव जीत कर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भले ही संजीवनी मिल गई हो, लेकिन आने वाले समय में बीस विधानसभा सीटों के उपचुनाव का खतरा उनके सिर पर मंडरा रहा है। नियम के खिलाफ संसदीय सचिव बनाए गए आप के बीस विधायकों की सदस्यता का मामला चुनाव आयोग ने लगभग तय कर दिया था, लेकिन जुलाई में इस मुद्दे पर आखिरी फैसला होने से पहले ही मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी रिटायर हो गए। तब से तीसरे चुनाव आयुक्त की जगह खाली ही थी, जिसके चलते उन सीटों पर फैसला नहीं हो पा रहा था। गुरुवार को केंद्र सरकार ने तीसरे आयुक्त की नियुक्ति कर दी। तो अब उन विधानसभा सीटों को खाली घोषित करके उन पर उपचुनाव करवाने का फैसला हो सकता है, जोकि आप और केजरीवाल के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।

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