Mirza Ghalib: जानिए कौन हैं मिर्ज़ा ग़ालिब, बादशाह जफर से मिली थी “दबीर-उल-मुल्क” की उपाधि

‘होगा कोई ऐसा कि मिर्ज़ा ग़ालिब को ना जाने?’ इस शेर से मिर्ज़ा ग़ालिब ने बरसों पहले अपने आप को बहुत खूब बयां किया था और आज यानि बुधवार को उनकी 220वीं सालगिरह के मौके पर भी यह शेर उतना ही प्रासंगिक है। शेर-ओ-शायरी के सरताज कहे जाने वाले और उर्दू को आम जन की जुबां बनाने वाले मिर्ज़ा ग़ालिब के जन्मदिवस के अवसर पर गूगल ने उनके सम्मान में डूडल बनाकर उन्हें याद किया है। मिर्ज़ा ग़ालिब की प्रथम भाषा उर्दू थी लेकिन उन्होंने उर्दू और फारसी भाषाओं में अनेकों कविताएं और शायरियां लिखीं। मिर्ज़ा ग़ालिब मुगल शासन काल के आखिरी महान कवि और शायर थे। ग़ालिब की शायरी लोगों के दिलों को छू लेती है।

मुगल काल के समय मिर्ज़ा ग़ालिब अपनी उर्दू गजलों के लिए बहुत मशहूर हुए थे। उनकी कविताओं और गजलों को कई भाषाओं और अलग-अलग तरीको में अनूदित किया गया है। मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा स्थित कला महल में हुआ था। जब मिर्ज़ा ग़ालिब केवल 13 वर्ष के थे तब उनकी शादी हो गई थी। मिर्ज़ा ग़ालिब ने नवाब इलाही बक्श की बेटी उमराव बेगम से शादी की थी। शादी के बाद मिर्ज़ा ग़ालिब अपने छोटे भाई मिर्जा यूसुफ खान के साथ दिल्ली आ गए थे। अपने एक पत्र में मिर्जा मिर्ज़ा ग़ालिब ने अपनी शादी को दूसरी कैद के रूप में वर्णित किया था। दिल्ली आने के बाद मिर्ज़ा ग़ालिब ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के बेटे को शेर-ओ-शायरी की शिक्षा देना शुरु किया।

र्ज़ा ग़ालिब के मशहूर शेर:

“हर एक बात पर कहते हो तुम कि तो क्या है,
तुम्ही कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तगु क्या है?
रगों में दौड़ते-फिरने के हम नहीं कायल,
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?”

Mirza Ghalib: मुगल शासन के काल में मिर्जा गालिब उर्दू और पारसी भाषा के एक महान कवि थे। 1850 में बादशाह जफर ने मिर्ज़ा ग़ालिब को “दबीर-उल-मुल्क” की उपाधि से सम्मानित किया था। इसके अलावा मिर्ज़ा ग़ालिब को “मिर्जा नोशा” की उपाधि भी दी गई। मिर्ज़ा ग़ालिब की कविताएं और शेर भारत में ही नहीं दुनियाभर में मशहूर हैं जो कि युवाओं को आज के समय में बहुत प्रेरित करते हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब दिल्ली में बरलीमरन में रहते थे। मिर्ज़ा ग़ालिब की मृत्यु 15 फरवरी, 1869 में हुई थी और उनकी मौत के बाद उनके घर को म्यूजियम का रूप दे दिया गया था। आज भी लोग मिर्ज़ा ग़ालिब के इतिहास और उनके बारे में जानकारी लेने के लिए म्यूजियम बन चुके उनके घर में जाते हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब की कविताओं पर उत्तरी भारत और पाकिस्तान में कई नाटक बन चुके हैं जिन्हें लोग काफी पसंद करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *