अब अयोध्या में भी हार गया BJP का छात्र संगठन, बसपा के हाथों ABVP की करारी शिकस्त
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) कॉलेज के चुनाव में हार गई है। उसे बीएसपी के हाथों करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। यहां के केएस कॉलेज में 8 वर्षों में पहली बार पिछले वर्ष एबीवीपी जीती थी। छात्रसंघ चुनाव के नतीजों की घोषणा शनिवार को हुई। बीएसपी के राजेश वर्मा इस बार कॉलेज के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए हैं। उन्होंने दूसरे नंबर पर रहीं समाजवादी छात्र सभा की उम्मीदवार नेहा कुमारी को 300 वोटों से हराकर कुर्सी हासिल की। बीएसपी के ही मनोज कुमार ने 45 वोटों की जीत दर्ज कर उपाध्यक्ष पद की कुर्सी संभाली।
अवध विश्वविद्यालय से संबद्ध इस 65 वर्ष पुराने संस्थान में एक लाख से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। नॉदर्न यूपी में यह सबसे बड़ा और इकलौता संस्थान है जहां छात्र संघ चुनाव कराए जाते हैं। पिछली बार के चुनाव में यहां पहली बार छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर एबीवीपी की महिला उम्मीदवार एकता सिंह ने कमान संभाली थी। एबीवीपी के महासचिव रहे अंकित त्रिपाठी और एक निर्दलीय उम्मीदवार को उप-सचिव बनाया गया है। एक छात्र ने बताया कि बीजेपी नेता कैंपस में जीत की उन्मीद लेकर आए थे लेकिन जो अनुमान उन्होंने लगाए, परिणाम वैसे नहीं रहे।
छात्रों को चुनाव की तैयारियां कराने वाले बीएसपी के फैजाबाद मंडल के को-ऑर्डिनेटर मोहम्मद असद ने कहा- हमने बीजेपी और एबीवीपी की विभाजनकारी राजनीति के खिलाफ एकजुट होकर कैंपेन चलाया था। एबीवीपी इसलिए हारी क्यों कि पूरे साल उसने कुछ नहीं किया। पिछले वर्ष चुनाव जीतने के बाद से एबीवीपी अपने हित साधने के लिए सत्ता की ताकत का केवल दुरुपयोग करती रही।
इस वर्ष एबीवीपी को और भी कई सस्थानों में हुए छात्र संघ चुनावों में शिकस्त का सामना करना पड़ा था। इनमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ, बनारस और मेरठ कॉलेज शामिल हैं। एबीवीपी को गुजरात सेंट्रल यूनीवर्सिटी, दिल्ली यूनीवर्सिटी और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी कुर्सी गंवानी पड़ी थी।
इस वर्ष एबीवीपी को और भी कई सस्थानों में हुए छात्र संघ चुनावों में शिकस्त का सामना करना पड़ा था। इनमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ, बनारस और मेरठ कॉलेज शामिल हैं। एबीवीपी को गुजरात सेंट्रल यूनीवर्सिटी, दिल्ली यूनीवर्सिटी और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी कुर्सी गंवानी पड़ी थी।