200 साल पुरानी है भीम कोरेगांव जंग: अंग्रेजों की ओर से लड़े थे दलित, हारे थे पेशवा, जानिए क्‍यों सुलगा महाराष्‍ट्र

भीम कोरेगांव की लड़ाई के 200 साल पूरे होने के मौके पर होने वाला जश्न हिंसा में तब्दील हो गया। मुंबई और आसपास के इलाकों में जबरदस्त हिंसा और आगजनी हुई। बसें तोड़ दी गईं। कई जगहों पर ट्रेनों को रोका गया। हिंसा की शुरुआत कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे दलितों और कुछ मराठा समुदाय के लोगों के बीच संघर्ष के बाद हुई। हालांकि, वजह नई नहीं है। इसका असली कारण काफी पुराना है। इतिहास पर नजर डालें तो जनवरी 1818 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी और पेशवाओं की सेना में जंग हुई थी। इसी जंग के बाद जीत की याद में एक जय स्तंभ स्थापित किया गया। विवाद इस जय स्तंभ पर लगे एक ‘सम्मान पटल’ को लेकर है। यह स्मारक पुणे-अहमदाबाद रोड पर पर्ने गांव में बना हुआ है।

कुछ साल पहले भारतीय सेना के पूना हॉर्स रेजिमेंट ने इस जय स्तंभ पर ‘एक सम्मान पटल’ या ‘रोल ऑफ ऑनर’ लगवाया था। इसमें उन शहीदों के नाम थे, जो रेजिमेंट के सदस्य थे। इसमें परमवीर चक्र विजेता भी शामिल थे, जिन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ 1965 और 1971 की जंग लड़ी थी। माना जाता है कि पूना हाउस की पहली जीत भीम कोरेगांव की लड़ाई में हुई। उस वक्त यह ब्रिटिश इंडियन आर्मी का हिस्सा था, जिन्होंने पेशवाओं की सेना को हराया था। ब्रिटिश सरकार ने ही इस जंग में मारे गए सैनिकों की याद में पर्ने गांव में जयस्तंभ का निर्माण कराया था। इस जंग की 200वीं सालगिरह के कुछ दिन पहले से सोशल मीडिया पर इस पटल को लेकर कुछ संदेश सर्कुलेट होने लगे। द इंडियन एक्सप्रेस ने इन संदेशों की पड़ताल की। इसमें दलित समुदाय से अपील की गई थी कि सम्मान पटल को हटवाया जाए क्योंकि इसका 1818 की जंग से कोई वास्ता नहीं है। संदेशों में यह आरोप लगाया गया था कि जयस्तंभ पर यह सम्मान पटल लगवाना ब्राह्मणवादी ताकतों की साजिश का हिस्सा है ताकि इतिहास से छेड़छाड़ की जा सके।

सोमवार को पुणे के नजदीक हुए संघर्ष में एक दलित की मौत के बाद मुंबई और आसपास के इलाकों में हिंसा और प्रदर्शन की खबरें हैं।

दलित समुदाय का इस जय स्तंभ से बेहद संवेदनशील रिश्ता है। यह माना जाता है कि अंग्रेजों की ओर से जिन लोगों ने पेशवाओं को हराया, वे महार जाति से ताल्लुक रखते थे। वे मानते हैं कि पेशवाओं की ‘ब्राह्मणवादी सत्ता’ के खत्म करने के लिए महार जाति के लोगों ने जंग लड़ी। 1920 में डॉ भीमराव आंबेडकर भी इस जय स्तंभ का दौरा करने गए थे। प्रोफेसर विलास खारत की लिखी एक किताब हाल ही में रिलीज हुई। यह किताब 1818 की लड़ाई पर आधारित है। इसमें दावा किया गया है कि जय स्तंभ पर लगे सम्मान पटल पर ‘उच्च ब्राह्मण कुल’ के सैनिकों के नाम हैं, जो 1965 और 1971 की जंग में शहीद हुए थे। किताब में दावा किया गया है कि यह ‘1 जनवरी 1818 के इतिहास को मिटाने की कोशिश है।’ किताब में इस बात की भी चेतावनी दी गई है कि अगर इसे नहीं हटाया गया तो अशांति हो सकती है।

डॉ अंबेडकर द्वारा स्थापित सामाजिक संगठन समता सैनिक दल के सदस्य मनोज गरबादे ने कहा, ‘डॉ अंबडेकर जयस्तंभ पर अक्सर जाते थे। यह अंबेडकरवादी आंदोलन के लिए बड़ा प्रेरणास्थल है। इस ‘रोल ऑफ ऑनर’ को लेकर कुछ दलितों में गलत धारणा है। हालांकि, अंबेडकरवादी भारतीय सेना का बड़ा सम्मान करते हैं और हम उन सैनिकों को सैल्यूट करते हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी शहादत दी। नफरत को खत्म करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।’ बता दें कि मनोज ने पहले ही इस बात की उम्मीद जताई थी कि इस बार 200वीं सालगिरह पर पहले के मुकाबले दोगुने लोग यहां आएंगे। वहीं, सेना से जुड़े एक बड़े अफसर ने नाम न प्रकाशित किए जाने की शर्त पर कहा कि सेना जातिगत पहचानों में विश्वास नहीं रखती। ‘रोल ऑफ ऑनर’ का मकसद हाल के जंग में शहीदों का सम्मान करना है।

 

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