शिवसेना सांसद बोले- जब से आई है फडणवीस सरकार, महाराष्ट्र में होने लगे हैं दंगा-फसाद

महाराष्ट्र के पुणे में फैली जातीय हिंसा की आग देश की आर्थिक राजधानी मुंबई तक पहुंच चुकी है। दलित संगठनों ने आज (मंगलवार, 02 जनवरी को) मुंबई बंद का आह्वान किया है, इसके मद्देनजर मुंबई के कई हिस्सों में धारा 144 लगा दी गई है। हिसा में एक शख्स की मौत भी हो चुकी है। इधर, हिंसा पर प्रतिक्रिया देते हुए शिवसेना सांसद और प्रवक्ता संजय राउत ने कहा है कि जब से महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की सरकार बनी है, तब से राज्य के अलग-अलग हिस्सों में दंगा-फसाद होता रहा है। टाइम्स नाऊ से बातचीत में राउत ने कहा कि पुणे हिंसा के पीछ बहुत बड़ी साजिश है। उन्होंने कहा कि इसके पीछे राजनीतिक कारण छिपे हैं। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि सियासी फायदे के लिए कुछ लोग महाराष्ट्र को तोड़ना चाहते हैं और राज्य की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।

शिव सेना सांसद ने कहा कि महाराष्ट्र के सामाजिक सद्भाव को खत्म करने की साजिश के तहत ही मराठा बनाम दलित हिंसा फैलाई गई है। उन्होंने कहा कि राज्य की फडणवीस सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए कि आखिर अचानक क्यों इस तरह की हिंसा फैल गई? राउत ने कहा कि जब से फडणवीस सरकार आई है, तब से अलग-अलग हिस्सों में दंगा-फसाद की घटनाएं बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा कि यह सोचना पड़ेगा कि क्यों मराठा मोर्चा अचानक आक्रामक हो गया है?

इस बीच, भारीपा बहुजन महासंघ के नेता प्रकाश अंबेडकर ने आरोप लगाया है कि दंगा फैलाने वालों में सत्ताधारी दल के लोग शामिल थे। अंबेडकर ने कहा कि शिवराज प्रतिष्ठान के संभाजी भिडे, हिन्दू एकता अघाडी के मिलिंद एकबोटे और मंजरी के गुघे ने ही साजिश रचकर हिंसा फैलाई है।

बता दें कि 1 जनवरी 1818 को पुणे स्थित कोरेगांव में भीमा नदी के पास उत्तर-पू्र्व में बाजीराव पेशवा और अंग्रेजों के बीच सत्ता संघर्ष में एक लड़ाई हुई थी। इस लड़ाई में ब्रिटिश इंडिया कंपनी की तरफ से महार और पेशवा सैनिकों की तरफ से मराठा पेशवाओं ने हिस्सा लिया था। अंग्रेजों की तरफ 500 लड़ाके, जिनमें 450 महार सैनिक थे और पेशवा बाजीराव द्वितीय के 28,000 पेशवा सैनिक थे, मात्र 500 महार सैनिकों ने पेशवा की शक्तिशाली 28 हजार मराठा फौज को हरा दिया था। इस लड़ाई को इतिहास में भीमा कोरगांव की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। इसी जंग के बाद जीत की याद में एक जय स्तंभ स्थापित किया गया। विवाद इस जय स्तंभ पर लगे एक ‘सम्मान पटल’ को लेकर है। यह स्मारक पुणे-अहमदाबाद रोड पर पर्ने गांव में बना हुआ है। 200 साल से इस लड़ाई की याद में दलित समुदाय वहां जश्न मनाता रहा है लेकिन इस बार मराठा समुदाय से विवाद हो गया।

 

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